राजेश बादल
तो अब पाकिस्तान ने भी मंज़ूर कर लिया कि अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के बीच बीते दिनों जंग नहीं रुकवाई थी और उसने सीधे ही युद्ध विराम के लिए भारत से अनुरोध किया था। पाकिस्तानी उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इसहाक डार ने यह खुलासा एक टीवी साक्षात्कार में किया है । हालाँकि इससे पहले पाकिस्तान बार बार अमेरिका को जंग रोकने के लिए धन्यवाद देता रहा है। दिलचस्प सवाल यह है कि जब पाकिस्तान यह जानता था कि अमेरिका ने युद्ध नहीं रुकवाया है तो फिर धन्यवाद किस बात का देता रहा है। जो भी हो,हक़ीक़त तो यही है कि पाकिस्तान ने अब मान लिया है कि बिना भारत से बात किए उसकी समस्याएँ नहीं सुलझने वाली हैं ।कम से कम विदेश मंत्री इसहाक़ डार के सुरों में बदलाव से तो यही लग रहा है।हालाँकि उनके पुराने बयानों को देखें तो वे बहुत परिपक्व नहीं रहे हैं और पाकिस्तान में ही उनको कोई गंभीरता से लेने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए जब वे विवशता दिखाते हुए कहते हैं कि बातचीत एक ही पक्ष तो नहीं कर सकता। उसके लिए तो दूसरा पक्ष भी चाहिए तो नहीं लगता कि पाकिस्तान वाकई भारत से बातचीत के लिए गंभीर है।
विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने क़तर के एक टीवी चैनल को इस साक्षात्कार में कहा है कि अमेरिका तो जंग रुकवाने के लिए बहुत उत्सुक था।लेकिन भारत ने ही उसे स्वीकार नहीं किया।इस तरह अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दावे के झूठ की पोल पाकिस्तान भी खोल रहा है।पर,याद रखना ज़रूरी है कि उसने इस तथ्य को तब स्वीकार किया ,जब उसे लगा कि कारोबारी टैरिफ बढ़ा कर भी अमेरिका हिन्दुस्तान को नहीं झुका सका। फिर पाकिस्तान की तो बिसात ही क्या है।डोनाल्ड ट्रम्प तो सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि वे पाकिस्तान से बहुत प्यार करते हैं। हाल के दिनों में उसके अमेरिकी प्रेम को देखते हुए चीन का भी मोहभंग हुआ है और रूस भी उसके साथ सात फेरे लेने के लिए तैयार नहीं है।चीन ने तो अपने चीन पाक कॉरिडोर के लिए आर्थिक मदद रोक दी है। अरब और मुस्लिम देश पाकिस्तान के मन माफ़िक़ समर्थन नहीं दे रहे हैं। ऐसी स्थिति में अगर वह हज़ार बरस तक साझा संस्कृति वाले मुल्क़ की ओर हसरत भरी निगाहों से ताक रहा है तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नज़र नहीं आता । यद्यपि उसके फ़ील्ड मार्शल जनरल आसिम मुनीर तो कठमुल्लों वाली भाषा नहीं छोड़ रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान में दोनों बड़ी क़ौमों की अलहदा संस्कृति है और उनका संगम कभी नहीं हो सकता। इसलिए इसहाक़ डार को हम कहाँ तक पाकिस्तान की औपचारिक विदेश नीति में निर्णायक परिवर्तन मान सकते हैं - कहना मुश्किल है ।
अपने साक्षात्कार में इसहाक़ डार साफ़ कहते हैं कि पाकिस्तान को दोनों देशों के बीच बातचीत में किसी तीसरे पक्ष के शामिल होने में कोई दिक़्क़त नहीं है,लेकिन भारत ऐसा नहीं चाहता ।पाकिस्तान केवल कश्मीर ही नहीं ,कारोबार से लेकर सिंधु जल समझौते पर भी चर्चा चाहता है।हम किसी से किसी चीज़ के लिए भीख नहीं मांग रहे हैं।पाकिस्तान अमन पसंद देश है।हमारे मुल्क़ का मानना है कि बातचीत ही आगे बढ़ने का रास्ता है,लेकिन इसके लिए दो पक्षों की ज़रूरत होती है। जब तक भारत बातचीत नहीं चाहेगा तो हम कैसे बातचीत करेंगे। हम किसी पर बातचीत थोप नहीं सकते।लेकिन दूसरी ओर वे अपने राष्ट्र की हठ और धमकाने वाला रवैया भी नहीं छोड़ना चाहते।इस बातचीत में वे बार बार याद दिलाते हैं कि मुस्लिम संसार में पाकिस्तान अकेला देश है ,जिसके पास परमाणु हथियार बनाने की क्षमता है। इसलिए उनके मुल्क़ की ताक़त को कोई देश हलके - फुल्के ढंग से नहीं ले सकता। सिंधु जल समझौते पर वे भारत पर संधि तोड़ने का आरोप लगाते हुए उसके व्यवहार को ग़ैर क़ानूनी बताते हैं। उनका दावा है कि कोई भी देश अंतरराष्ट्रीय वैध संधि से बाहर नहीं निकल सकता,जो भारत और पाकिस्तान के बीच है।आज की परिस्थितियां बिलकुल अलग हैं।संधि से बाहर निकलना अवैध है।आप इससे न ही बाहर निकल सकते हैं।न ही इसमें तब्दीली कर सकते हैं।अगर कोई ग़लतफ़हमी है तो उसके लिए संधि के ज़रिए बना तंत्र मौजूद है।भारत की पानी के साथ खेलने की इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकती।
यहाँ ध्यान देने की बात है कि भार ने जब कश्मीर में अनुच्छेद 370 विलोपित की तो यह पाकिस्तान ही था ,जिसने सबसे पहले भारत के साथ व्यापार बंद कर दिया था। उसने भारत को मोस्ट फेवरेट नेशन का दर्ज़ा समाप्त कर दिया और ऐलान किया कि जब तक अनुच्छेद वापस बहाल नहीं होती ,तब तक भारत से कोई बातचीत या कारोबार प्रारंभ नहीं होगा। अब पाकिस्तान अपनी ओर से भारत के साथ चर्चा की बात कर रहा है ,जबकि अनुच्छेद अब भी अस्तित्व में नहीं है। कह सकते हैं कि पाकिस्तान के हुक्मरानों ने अपनी अवाम को बदहाली के गर्त में खुद धकेला है।अन्यथा भारत तो बहुत ही कम दामों पर पाकिस्तान की जनता के लिए ज़रूरत की वस्तुएं मुहैया करा रहा था।
वैसे हिन्दुस्तान ने कभी भी अपनी ओर से चर्चा के द्वार बंद नहीं किए हैं। जंग के दिनों में और उनके बाद भी संवाद होता ही रहा है। मगर पाकिस्तान पर कश्मीर को पाने की ललक इस क़दर हावी है कि उसने भारत को छोड़कर सारे संसार से कश्मीर के लिए वार्ताएं की हैं। गुज़िश्ता 77 साल में वह पहले अमेरिका के पास गिड़गिड़ाया कि वह कश्मीर दिला दे तो वह जो भी कहेगा ,करने को तैयार है। अमेरिका नाकाम रहा तो वह मध्यपूर्व के मुस्लिम देशों की गोदी में जाकर बैठा। मज़हब के नाम पर उनसे कश्मीर माँगा। जब वे भी असफल रहे तो रूस के पास गया। रूस से भी उसे निराशा हाथ लगी। अब वह फिर अमेरिका की शरण में है। यानी भारत को छोड़कर कश्मीर के लिए उसने दुनिया के हर महादेश या समूह से बात कर ली। अब ऐसे देश का कौन भरोसा करे ?






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