• डॉ. सुधीर सक्सेना
पाकिस्तान की दो नावों पर सवारी करने की फितरत के चलते उसके परम मित्र चीन ने अंतत: उसे गच्चा दे दिया है। बीजिंग और वाशिंगटन की तरफ एक संग पींगे भरने के फलस्वरूप उसे अपने दोगलेपन का तगड़ा खामियाज़ा भुगतना पड़ा है। अपने अप्रत्याशित कदम के तहत चीन ने पाकिस्तान के महत्वाकांक्षी चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कारीडोर यानि सीपीईसी से हाथ खींच लिये हैं। 60 बिलियन डॉलर की इस परियोजना से उसकी ताजा बेरूखी के चलते पाक की मेनलाइन-1 रेलवे अपग्रेड योजना खटाई में पड़ जायेगी। गौरतलब है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ तिआनजिन में शंघाई सहयोग संगठन की शिखर वार्ता में भाग लेने गये थे और उनकी बीजिंग में चीनी नेताओं से वार्ता भी हुई, लेकिन वह सीपीईसी फेज-2 के लिये चीनी मदद या ठोस आश्वासन पाने में विफल रहे। चीनी नेताओं ने कृषि, विद्युत-वाहनों, सौर ऊर्जा, स्वास्थ्य और इस्पात से संबंधित 8.5 बिलियन डॉलर के आशय-पत्रों के पुलिंदे के साथ उन्हें टरका दिया। बीजिंग के इस ताजा कदम को ट्रंप के टैरिफ-जंग के दौर में नये भूराजनीतिक समीकरणों का नतीजा माना जा रहा है, जिनके तहत विश्व-परिदृश्य में मस्क्वा-बीजिंग-दिल्ली की नयी शक्तिशाली धुरी आकार ले रही है।
बीजिंग के ताजा फैसले के उपरांत सीपीईसी के अधर में लटकने के आसार पैदा हो गये हैं। कर्ज से लदे कंगाल पाकिस्तान के पास इतने वित्तीय साधन नहीं हैं कि वह अधूरे कॉरीडोर को पूरा कर सके। माना जा रहा है कि कॉरीडोर के बनने पर दक्षिण और मध्य एशिया, मध्यपूर्व और अफ्रीका की आर्थिकी पर असर पड़ेगा। निश्चित ही इससे चीन और पाकिस्तान के बीच वाणिज्य-व्यापार में गति आयेगी। इससे पाकिस्तान जहां चीनी माल से पट जायेगा, वहीं चीन को ऊर्जा आयात में सुभीता होगा। इस कॉरीडोर के बनने का अर्थ था चीन के पश्चिमोत्तर शिनजियांग प्रांत का, सड़क, रेलपांत, पाइप लाइन और ऊर्जा परियोजनाओं की मार्फत पाकिस्तान के अरब सागर के तटीय ग्वादर बंदरगाह से जुड़ना। सीपीईसी परियोजना करीब तीन हजार किमी अंतराष्ट्रीय भूभाग में फैली है और चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) में खासी अहमियत रखती है।
इस आशय के संकेत मिले हैं कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने चीनी नेताओं की मनुहार में कोई कोर कसर नहीं उठा रखी। उन्होंने चीन को भरोसा दिया पाकिस्तान चीनी अमले को पूरी सुरक्षा मुहैया करेगा। उन्होंने बीजिंग में अपने छह-दिनी प्रवास में चीनी नेताओं को कन्विंस करने की भरपूर कोशिश की कि चीन के निवेशकों को पाकिस्तान में लाल फीताशाही का सामना नहीं करना पड़ेगा, लेकिन उनकी दाल गली नहीं। बीजिंग ने चीनी परियोजना कर्मियों पर हमलों और नौकरशाही के अड़ंगों को गंभीरता से लिया और शरीफ को टका सा जवाब देकर बैरंग लौटा दिया। उल्लेखनीय है कि चीनी निवेशकों की भारी रकम पाकिस्तान में फंसी है और इस्लामाबाद के कांधे कर्ज की गठरी दिनोंदिन भारी होती जा रही है। पाकिस्तान अर्से से अपनी गाड़ी खींचने के फेर में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के ‘बेल आउट्स’ पर अवलंबित है। ऐसे में चीनी निवेशक पाकिस्तान में बड़ी रकम लगाने को पुरजोखिम मान रहे हैं। यह भी सच है कि पाकिस्तान सन 2015-19 के दरम्यान पूरी कई परियोजना की बकाया रकम को अभी तक नहीं चुका सका है। बलूचिस्तान में सोने और तांबे के बड़े भंडार मिलने ने सीपीईसी की जरूरत और महत्ता को बढ़ा दिया है, क्योंकि मौजूदा अधोसंरचना के बूते वह इनका दोहन और निर्यात नहीं कर सकता। बीजिंग इस तथ्य से वाकिफ है कि कनाडा वहां पहले से मौजूद है और पाकिस्तान के स्वर्ण और ताम्र भंडारों पर अमेरिका की लोलुप निगाहे हैं।
चीन और पाकिस्तान के मध्य इस असमाप्त द्वन्द्व-गाथा का ताजा क्षेपक यह है कि पाकिस्तान ने कराची और पेशावर के बीच 1800 किमी लंबी रेलपांत को अपग्रेड करने के लिये दो बिलियन डॉलर के ऋण के लिये एशियन डेवलपमेंट बैंक का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है।