Know your world in 60 words - Read News in just 1 minute
हॉट टोपिक
Select the content to hear the Audio

Added on : 2022-11-12 13:26:01

राजेश बादल
फेसबुक,इंस्टाग्राम , व्हाट्स अप और ट्विटर से बड़ी तादाद में छंटनी इन दिनों सुर्ख़ियों में है । अभिव्यक्ति के इन अंतरराष्ट्रीय मंचों में प्रबंधन की इस कार्रवाई पर अलग अलग राय व्यक्त की जा रही है । फेसबुक के कर्ता धर्ता जकरबर्ग ने अपनी दीर्घकालिक कारोबारी नीति में खामियाें को ज़िम्मेदार माना है ।उसकी सज़ा पेशेवर अधिकारियों और कर्मचारियों को मिल रही है । बोलचाल की भाषा में कहें तो कंपनी के मालिकों की अक्षमता का दंड उनको मिल रहा है ,जो उसके लिए दोषी नहीं हैं । यह अन्याय का चरम है । ख़ुद जकरबर्ग ने कहा कि उनकी योजना ने काम नहीं किया और वे स्वयं इसके लिए ज़िम्मेदार हैं ।यह सवाल उनसे ज़रूर पूछा जाना चाहिए कि उनकी पेशेवर नैतिकता कहां गई ।कंपनी को आर्थिक नुकसान के लिए वे अपने को दोषी मानते हैं और सज़ा कर्मचारियों को देते हैं ।
कंपनी के मुताबिक़ कोविड के लॉकडाउन काल में लोग समय काटने के लिए इन अवतारों पर देर तक टिके ।इस कारण विज्ञापन बढ़े और कंपनी के कई खर्चे बचे । इससे मैनेजमेंट ने ख्याली पुलाव पकाया कि कोविड के बाद भी यही स्थिति बनी रहेगी। मगर ऐसा नहीं हुआ । उसने मुनाफ़े के मद्दे नजर लंबी महत्वाकांक्षी योजनाएं बना लीं । जब हालात सामान्य हो गए ,तो कंपनियों की कमाई घट गई । क़रीब साल भर ऐसा चलता रहा ।तब प्रबंधन नींद से जागा और वैकल्पिक मंझोली या छोटी कारोबारी नीति तैयार करने के बजाय उसने कर्मचारियों पर गाज़ गिरा दी । वे समर्पित प्रोफेशनल ,जिन्होंने दिन रात मेहनत करके संस्था को एक ब्रांड बनाया,एक झटके में ही सड़क पर आ गए ।
कुछ नए संस्थानों को भी ऐसा करना पड़ा ।उनकी भी योजना दोषपूर्ण थी । आमतौर पर कोई पौधा जड़ों से अंकुरित होता है और फिर ऊपर जाता है । जड़ जितनी मज़बूत होगी, पौधा उतना ही ऊंचे जाएगा । आप पत्तों को सींच कर पौधे को मज़बूत नही कर सकते । लेकिन इन नई कंपनियों ने इस बुनियादी सिद्धांत का पालन नहीं किया । उन्होंने छोटे आकार से शुरुआत करके शिखर छूना गवारा नहीं किया । उन्होंने भारी भरकम निवेश से आग़ाज़ किया। पहले दिन से ही अपने आसमानी खर्चे रखे ।नतीज़ा यह कि मुनाफ़ा लागत के अनुपात में नहीं निकला और निवेश का धन भी समाप्त हो गया ।इसलिए भी छटनी और कटौती की तलवार चल गई ।कोई पंद्रह बरस पहले एक टीवी चैनल समूह वॉयस ऑफ इंडिया के नाम से बाज़ार में आया । फाइव स्टार कल्चर से यह प्रारंभ हुआ और कुछ महीनों बाद मालिकों के पास वेतन देने के लिए लाले पड़ गए।चैनल बंद करना पड़ा ।
मैं उसमें समूह संपादक था । मेरे भी लाखों रुपए डूब गए ।
मुझे याद है कि उससे भी पंद्रह साल पहले रिलायंस समूह ने हिंदी और अंग्रेज़ी में साप्ताहिक संडे ऑब्जर्वर प्रारंभ किया था । शानदार शुरुआत हुई । तड़क भड़क के साथ। आज से तीस साल पहले उस अख़बार में ट्रेनी पत्रकार को पांच हज़ार रुपए दिए जाते थे । इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि किस भव्यता के साथ यह अख़बार शुरू हुआ होगा। इसका परिणाम भी वही ढाक के तीन पात ।तीन साल पूरे होते होते ताला पड़ गया ।
स्वस्थ्य पत्रकारिता को समर्पित पत्रकारों के लिए ऐसे फ़ैसले बड़े दुख भरे होते हैं । जो दुनिया भर के लिए लड़ते हैं ,उनके लिए कोई नही लड़ता । कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों की डगर आसान नहीं है  ।

आज की बात

हेडलाइंस

अच्छी खबर

शर्मनाक

भारत

दुनिया