ल दिया गया जो संविधान निर्माताओं की ‘‘बुद्धिमत्ता के साथ विश्वासघात का संकेत है.’’ उन्होंने कहा कि 1976 में आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में जो शब्द जोड़े गए, वे ‘‘नासूर’’ थे और उथल-पुथल पैदा कर सकते हैं.
उपराष्ट्रपति ने यहां एक पुस्तक विमोचन समारोह में कहा, ‘‘यह हजारों वर्षों से इस देश की सभ्यतागत संपदा और ज्ञान को कमतर आंकने के अलावा और कुछ नहीं है. यह सनातन की भावना का अपमान है.’’ धनखड़ ने प्रस्तावना को एक ‘‘बीज’’ बताया जिस पर संविधान विकसित होता है. उन्होंने कहा कि भारत के अलावा किसी दूसरे देश में संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं किया गया.