ज्ञानतीर्थ सप्रे संग्रहालय
विजयदत्त श्रीधर
जैसे एक नन्हा बीज विशाल वृक्ष की नींव बनता है, वैसे ही कोई कृति किसी तीर्थधाम का आधार रच सकती है। यह अनुभव मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी के लिए ‘मध्यप्रदेश में पत्रकारिता का इतिहास’ पुस्तक की पाण्डुलिपि तैयार करते समय हुआ। अकादमी ने सन 1982 में यह दायित्व सौंपा था। तथ्य संग्रह और उपलब्ध संदर्भों की पुष्टि के लिए प्रदेश के सभी प्रमुख प्रकाशन केन्द्रों पर जाना हुआ। यह आसन्न संकट अनुभव हुआ कि विद्यानुरागी परिवारों के व्यक्तिगत संग्रहों में दो-तीन पीढ़ियों तक का जो पत्र-पत्रिका-ग्रंथ संग्रह है, वह जर्जर अवस्था में है। पीले पड़ चुके पन्ने डराते थे कि हाथ लगते ही टूटकर झड़ जाएँगे। प्रायः सभी संग्रहकर्ता इस चिंता में डूबे मिले कि आने वाली पीढ़ियों तक यह राष्ट्रीय बौद्धिक धरोहर कैसे सुरक्षित पहुँचे। सबसे घनीभूत चिंता जबलपुर के लिविंग इनसाइक्लोपीडिया कहे जाने वाले गुणी शिक्षक-पत्रकार-साहित्यकार रामेश्वर गुरु के मन-मस्तिष्क में पाई। चर्चा के कई दौर में यह संकल्प उभरा कि शोध-संदर्भ की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण यह सामग्री एक छत के नीचे संजो ली जाए। इसका वर्गीकरण और सूचीकरण हो। संरक्षण के उपाय किए जाएँ। शोधार्थियों, विद्यार्थियों, पत्रकारों और रचनाकारों को संस्थान में बैठकर ही अध्ययन के लिए संदर्भ सामग्री उपलब्ध कराई जाए। सामान्य पुस्तकालयों की तरह पुस्तकें बाहर ले जाने के लिए जारी न की जाएँ।
इस संकल्प को साकार करने के लिए भोपाल में 19 जून, 1984 को माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान की स्थापना हुई। हिन्दी नवजागरण के पुरोधा माधवराव सप्रे के सम्मान में यह नामकरण किया गया। कृती-व्रती माधवराव सप्रे हिन्दी की पहली मौलिक कहानी ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ के रचयिता, हिन्दी समालोचना शास्त्र के उन्नायक, अर्थशास्त्र की हिन्दी शब्दावली तैयार करने वाले कोशकार और ‘भारत की एक राष्ट्रीयता’ के उद्घोषक थे। हिन्दी पत्रकारिता को संस्कारित करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। माखनलाल चतुर्वेदी, द्वारकाप्रसाद मिश्र, सेठ गोविंददास प्रभृति विभूतियों के संस्कार प्रदाता थे। लोकमान्य तिलक की क्रान्तिधर्मी पत्रकारिता को हिन्दी जगत में विस्तार देने वाले सप्रे जी ही थे।
बीते 41 वर्षों में सप्रे संग्रहालय ने सहस्राधिक हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ, दो हजार से अधिक पोथियां और पुरातन आधार ग्रंथ, 26,479 शीर्षक समाचारपत्रों और पत्रिकाओं की फाइलें, विभिन्न विषयों और भाषाओं की 1,66,222 पुस्तकें, मनीषियों के 10,000 पत्र आदि संदर्भ सामग्री संजोयी है। परिमाण में यह लगभग पाँच करोड़ पृष्ठ सामग्री है। हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, अंगरेजी, मराठी, गुजराती, सिंधी भाषाओं के साहित्य का विशाल संग्रह सप्रे संग्रहालय में है। देश के कोने-कोने से पाँच सौ से अधिक ऐसे विद्या अनुरागी परिवारों ने, जिनमें अध्ययन और अध्यवसाय की परंपरा रही है, अपने निजी संग्रह भावी पीढ़ियों के ज्ञान-लाभ और प्रामाणिक स्रोतों के संरक्षण के लिए सप्रे संग्रहालय को विश्वासपूर्वक सौंप दिए हैं। इनमें अनेक प्रकाशन 200 वर्ष से भी अधिक पुराने और दुर्लभ हैं। भारत में नवजागरण आंदोलन, राजनीतिक आजादी की लड़ाई, समाजसुधार आंदोलन, स्वदेशी और स्वावलंबन के आंदोलन, शिक्षा के दरवाजे सभी के लिए खोलने के आंदोलन आदि युगांतरकारी घटनाचक्र से संबंधित प्रचुर संदर्भ सामग्री सप्रे संग्रहालय में उपलब्ध है। अभी तक इस सामग्री के आधार पर देश-विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के 1,238 शोध छात्रों ने डी.लिट., पीएच.डी. और एम.फिल. की थीसिस लिखी हैं और उपाधियाँ अर्जित की हैं। कई विश्वविद्यालयों ने माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल को शोध केन्द्र के रूप में मान्य किया है।
देश-विदेश के मूर्धन्य संपादकों, शिक्षाविदों और साहित्य मनीषियों ने सप्रे संग्रहालय का अवलोकन करते हुए इसे ‘ज्ञानतीर्थ’ की संज्ञा दी है। उन्होंने माना है कि इतिहास को संग्रहालय में आकर रू-ब-रू महसूस किया जा सकता है। सप्रे संग्रहालय में लगभग 200 मूर्धन्य संपादकों के चित्र भी लगाए गए हैं। इनमें भारत के सभी भाषाओं के संपादकों को सम्मान दिया गया है। आने वाली पीढ़ियाँ अपने कलम के पुरखों को जानें और पहचाने इस दृष्टि से चित्रदीर्घा सजाने का विशेष महत्व है। अज्ञान अनर्थों को जन्म देता है। आजकल हिन्दी के आद्य संपादक युगल किशोर शुक्ल के चित्र के नाम पर आचार्य शिवपूजन सहाय का चित्र प्रसारित किया जा रहा है। जबकि शुक्ल जी का चित्र अभी तक उपलब्ध ही नहीं हो पाया है।
सप्रे संग्रहालय में पुस्तकालय सेवा के तीनों प्रारूप कार्यरत हैं। एक, परंपरागत सामान्य पुस्तकालय जिसमें संस्थान में बैठकर पुस्तक आदि पढ़ने की सुविधा है। दो, भारतीय स्टेट बैंक की सामाजिक सेवा बैंकिंग के अंतर्गत सी.एस.आर. मद से विकसित डिजिटल लाइब्रेरी, जिसमें महत्वपूर्ण 27,04,523 पृष्ठ कम्प्यूटर स्क्रीन पर पढ़ने के लिए उपलब्ध हैं। यह दुर्लभ श्रेणी की संदर्भ सामग्री है। शोध छात्र बड़ी संख्या में इसका लाभ उठाने आ रहे हैं। तीन, रामेश्वरदास गार्गव स्मृति ई-लाइबेरी जिसका लाभ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवजन उठा रहे हैं। सप्रे संग्रहालय की वेबसाइट https://sapresangrahalaya.org पर यहाँ संगृहीत सामग्री की विस्तृत सूची उपलब्ध है। दुनिया के किसी भी कोने से इसे देखकर वांछित जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल ने समय-समय पर पत्रकारिता, जनसंचार और विज्ञानसंचार पर पुस्तकों का प्रकाशन किया है। भारतीय पत्रकारिता कोश, पहला संपादकीय, आधी दुनिया की पूरी पत्रकारिता जैसे संदर्भ ग्रंथों का प्रकाशन हिन्दी के प्रमुख प्रकाशकों से कराया गया है। इन पुस्तकों अकादमिक और पत्रकारिता क्षेत्र में अपनाया गया है। एक से अधिक संस्करण भी प्रकाशित हुए हैं। यह कभी समाप्त न होने वाली ज्ञान-यात्रा है। सप्रे संग्रहालय इस पथ का अविराम पथिक है।
(विजयदत्त श्रीधर)
संस्थापक-संयोजक
माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय