राजेश बादल
पाकिस्तान अब नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज़ को चली वाली कहावत पर अमल करता दिखाई दे रहा है।इस पड़ोसी मुल्क़ के असली शासक आसिम मुनीर ने फिर ज़हर उगलना शुरू कर दिया है। वे कह रहे हैं कि पाकिस्तान तो चुपचाप बैठा था,लेकिन हिन्दुस्तान ने बिना उकसावे के आक्रमण कर दिया । भारत को धमकाते हुए उन्होंने कहा है कि 2019 और 2025 में बालाकोट और पहलगाम में हादसे के बाद ऑपरेशन सिन्दूर का जिस तरह उसने मुंहतोड़ जवाब दिया है,वैसा ही भविष्य में भी दिया जाएगा। पाकिस्तान की नौ सेना अकादमी में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि दरअसल पाकिस्तान तो एक ज़िम्मेदार और अमन पसंद मुल्क़ है। भारत ही समूचे इलाक़े में तनाव पैदा करने का काम कर रहा है।
यह पहली बार नहीं है ,जब मुनीर ने पाकिस्तानी अवाम को भारत के ख़िलाफ़ भड़काने का काम किया है। पहलगाम में आतंकी हमले से केवल पाँच दिन पहले सत्रह अप्रैल को उन्होंने कहा था कि कश्मीर पाकिस्तान की गले की नस है और भारत को इसे याद रखना चाहिए। इसी के बाद पहलगाम में 26 पर्यटकों को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने गोलियों से भून दिया। मुनीर साफ़ कहते हैं कि वे कश्मीर को भारत से मुक्त कराने के लिए आतंकी संगठनों को समर्थन देना जारी रखेंगे। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा है कि वे अब उन आतंकी अड्डों को फिर से जीवित करने का काम करेंगे। जानकारी के मुताबिक़ पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर में अब छोटे छोटे नए उच्च तकनीक वाले आतंकी प्रशिक्षण शिविर बनाए जा रहे हैं। पहले पाकिस्तान यही काम ख़ामोशी से यह काम करता था। अब बेशर्मी से कर रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ दावत उड़ाने के बाद आसिम मुनीर हवा में उड़ रहे हैं और खुल्लमखुल्ला दहशतगर्दी की वकालत कर रहे हैं।भारत से डोनाल्ड ट्रम्प की बेरुखी इसी बात से समझ में आती है कि एक जुलाई से एक महीने के लिए पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष रहते हुए महीने भर का एजेंडा सेट करेगा। जनवरी में ही उसे सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य चुना गया था।भारत ने इसके एक दिन पहले संयुक्त राष्ट्र संघ कार्यालय के प्रवेश द्वार पर एक दस्तावेज़ी प्रदर्शनी लगाईं थी। द ह्यूमन कॉस्ट ऑफ़ टेररिज़्म नामक इस प्रदर्शनी में पाकिस्तान को बेनक़ाब किया गया था।
दूसरी तरफ भारत दशकों से तमाम अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष में एकजुट होने की अपील करता रहा है। भारत में सीमापार से आतंकवादी हमलों के लिए लंबे समय तक विश्व के अनेक महत्वपूर्ण देश भारत के रुख़ का समर्थन करते नज़र आते थे। लेकिन अब तस्वीर बदलती दिखाई दे रही है। चंद रोज़ पहले रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने शंघाई सहयोग परिषद के साझा बयान पर दस्तख़त करने से साफ़ इनकार किया था।भारत चाहता था कि साझा बयान में पहलगाम की जघन्य आतंकी वारदात की निंदा हो और आतंकवाद को संरक्षण देने वाले मुल्क़ पाकिस्तान को कोसा जाए। पर ऐसा नहीं हुआ। वे चाहते थे कि परिषद के अन्य सदस्य देश आतंकवाद के मसले पर साथ दें। लेकिन इन राष्ट्रों ने ऐसा नहीं किया।ज़ाहिर है कि चीन के दबाव में ऐसा हुआ।अब ताज़ी ख़बर यह है कि चीन बांग्लादेश और पाकिस्तान को साथ लेकर साका ( साउथ एशिया अलाइंस ) नाम से नया संगठन बना रहा है। इसकी बैठक अगले महीने पाकिस्तान में होगी। चीन ने इसमें शामिल होने के लिए मालदीव और अफ़ग़ानिस्तान को राज़ी कर लिया है।यह संगठन सार्क के जवाब में बनाया जा रहा है।चीन का यह विरोधाभासी रवैया है।एक तरफ़ वह भारत से सीमा विवाद पर बातचीत की पेशकश करता है तो दूसरी ओर आतंकवाद को पालने पोसने का काम भी कर रहा है। नेपाल पर तो पहले ही उसने डोरे डाल रखे हैं।चीन एक ऐसा क्रूर और हिंसक देश है ,जो थियानमन चौक में अपनी नौजवान नस्ल को ही गोलियों से भून देता है और हिचकिचाता नहीं।अपने ही नागरिकों को मारना क्या दहशतगर्दी का नमूना नहीं है ? आज भारत में दशकों से जिसे हम नक्सली हिंसा कहते हैं ,वह तो चीन की ही देन है।उसे सरकारी भाषा में माओवादी उग्रवाद ही कहते हैं।प्रसंग के तौर पर बता दूँ कि चीन ने तो 1949 से ही अपने आतंकी इरादे साफ़ कर दिए थे।जब वहाँ नई सरकार सत्ता में आई तो भारत ने सहज स्वाभाविक रूप से बधाई भेजी। लेकिन चीन ने इसका उत्तर तक नहीं दिया ,उल्टे तेलंगाना में माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी को औपचारिक सन्देश भेजा कि भारत की बुर्जुआ सरकार को हिंसक क्रान्ति के ज़रिए उखाड़ फेंको। चीन ने तब हथियार दिए ,अपने उग्रवादियों को प्रशिक्षण दिया और आर्थिक मदद भी की। जब भारत सरकार को चीन के समर्थन से इन आतंकवादी गतिविधियों की ख़बर लगी तो तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारीलाल नंदा ने आकाशवाणी पर राष्ट्र के नाम आपात सन्देश प्रसारित किया और उसमें बताया कि सेना इन आतंकी शिविरों और उग्रवादी ठिकानों को समाप्त करने के लिए कार्रवाई कर रही है। इसके बाद भीषण जंग हुई और भारत के भीतर चल रहे चीन के आतंकी अड्डों को ख़त्म किया गया। उसके बाद से लेकर आज भी माओवादी उग्रवादियों को चीन के समर्थन की ख़बरें लगातार मिलती रहती हैं।
विडंबना यह है कि भारत के विरोध में अमेरिका और चीन दोनों ही पाकिस्तान और बांग्लादेश का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह छिपा हुआ तथ्य नहीं है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में अमेरिका की कठपुतली सरकारें काम कर रही हैं।पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान अपनी सरकार की बर्ख़ास्तगी के लिए सार्वजनिक रूप से अमेरिका को ज़िम्मेदार ठहराते रहे हैं और बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद भी अपनी सरकार के तख़्तापलट के पीछे अमेरिका का हाथ बताती रही हैं। क्या मान लिया जाए कि अमेरिका और चीन असल में एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं और जैसा एक दूसरे के प्रति वे सार्वजनिक व्यवहार करते हैं,असल में वैसे नहीं हैं।आज अमेरिका जिस तरह पाकिस्तान के प्रति लाड़ दिखा रहा है ,उससे क्या उसके दोहरे रवैए का सुबूत नहीं मिलता ? स्पष्ट है कि वर्तमान में आतंकवाद की परिभाषा बदल चुकी है।अब आतंक फैलाकर देशों में तख़्तापलट भी किया जा रहा है।पाकिस्तान और बांग्लादेश में कई वारदातें इसका गवाह हैं।
तो यक्ष प्रश्न यही है।वह एक दौर था,जब आतंकवाद की एक वैश्विक परिभाषा हो सकती थी।समूचा संसार उस मसले पर एक साथ खड़ा दिखाई दे सकता था।अमेरिका पर अल क़ायदा के भीषण हमले पर और मुंबई में धमाकों की निंदा सारे देशों ने की थी। पर ,अब लगता है कि सब कुछ बदल गया है। अब तो यह देखना होगा कि कौन सा देश आतंकवादी नहीं है।अपने राष्ट्रीय अथवा व्यक्तिगत हितों की ख़ातिर अधिकतर देशों के राष्ट्राध्यक्ष कहीं न कहीं आतंकवाद का सहारा ले रहे हैं। ऐसे में नक़्क़ारख़ाने में तूती की आवाज़ की तरह भारत की आवाज़ भी कहीं मद्धम न पड़ जाए।अगर यह सच है तो हिन्दुस्तान को अब गंभीर विचार की आवश्यकता है कि उसे वैश्विक मंच से आतंकवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष की बार बार अपील क्यों करना चाहिए ?अब तो उसे सीधी कार्रवाई करना ही चाहिए। इसके लिए विश्व के किसी देश का यह प्रमाणपत्र हासिल करने की ज़रुरत नहीं है कि पाकिस्तान आतंकवादी देश है।
हालिया दौर में एक के बाद एक सारे बड़े देशों की भूमिका का ज़िक्र प्रासंगिक होगा ।अमेरिका और चीन समेत बड़े ,सभ्य , आधुनिक और संपन्न मुल्क़ अब आतंकवाद की वैसी निंदा नहीं करते। बल्कि उस हिंसा में कहीं न कहीं स्वयं शामिल हो जाते हैं। विश्व बिरादरी को देख लीजिए। कोई देश अपने नागरिकों को ही आतंकित कर रहा है तो कोई मुल्क़ अपना रौब ग़ालिब करने के लिए धड़ल्ले से उग्रवाद का सहारा ले रहा है। इज़रायल एक भय से ग्रसित है कि ईरान परमाणु बम नहीं बना ले इसलिए वह उस पर भारी हमला कर देता है। क्या वह हमला आतंकवादी हमला नहीं था ? अमेरिका इज़रायल के समर्थन में ईरान पर भयानक आक्रमण कर देता है।उसके परमाणु संयंत्रों को निशाना बनाता है। क्या वह उग्रवादी गतिविधि के दायरे में नही आता ? इस आतंकी हमले के बाद वह डराकर युद्ध विराम भी कराता है। क्या यह सब आतंकवाद के उदाहरण नहीं माने जाने चाहिए ? रूस और यूक्रेन के बीच तीन साल से भी अधिक समय जंग चल रही है। यूक्रेन नाटो की गोद में बैठना चाहता है , क्योंकि उसे रूस से भय है कि कहीं रूस यूक्रेन पर क़ब्ज़ा न कर ले। उधर नाटो ने पंद्रह साल से यूक्रेन की अर्ज़ी लटका कर रखी है। उधर रूस नाटो सेना से भयभीत है कि उसकी संयुक्त सेना कहीं यूक्रेन के रास्ते रूसी सीमा पर आकर नहीं डट जाए।पाकिस्तान भारत का डर दिखाकर अपने नागरिकों को आतंकित करता रहता है।वह बलूचिस्तान में जिस तरह फौजी कार्रवाई करता है और कसाई की तरह बलूच नागरिकों को मारता है,क्या वह आतंकवाद की परिधि में नहीं आता।जब तक बांग्लादेश नहीं बना था तो पाकिस्तानी सेना पूर्वी पाकिस्तान में उग्रवादी गतिविधियाँ नहीं चला रही थी ? आज यही काम बांग्लादेश कर रहा है।वहाँ अल्पसंख्यकों को डरा धमका कर,उनमें दहशत पैदाकर ऐसी हुकूमत आतंकी हरकतें कर रही है,जो बिना चुनाव के सत्ता पर क़ाबिज़ है।उत्तर कोरिया अपने नागरिकों को दहशत में रखता है।अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान अपने नागरिकों को आतंकित करके रखता है।
लब्बोलुआब यह कि भारतीय लोकतंत्र को बदलते परिदृश्य में बेहद गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद में उसे अपने दम पर ही लड़ाई लड़नी होगी।अब आतंकवादी वारदातों में कोई दूसरा देश सहयोगी बनेगा -यह नहीं कहा जा सकता।