Know your world in 60 words - Read News in just 1 minute
हॉट टोपिक
Select the content to hear the Audio

Added on : 2025-07-04 16:27:51

• डॉ. सुधीर सक्सेना 

उत्तर अटलांटिक संधि संगठन यानि नाटो का चौतीसवां शिखर सम्मेलन 24 और 25 जून को नीदरलैंड में हेग में सकुशल संपन्न हो गया। संगठन में अतीत में पड़ी दरारों से यह आशंका थी कि नाटो में मतभेद उभर सकते हैं अथवा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अड़ियल और जिद्दी रवैये से सम्मेलन किसी सर्वसम्मति या सामूहिक फैसले पर नहीं पहुंचे, किंतु ऐसा कुछ हुआ नहीं। उलटे विभिन्न मुद्दों पर शरीक राष्ट्रों में मतैक्य ने संगठन में अमेरिका की नाभिकीय सत्ता और वर्चस्व पर मोहर लगा दी, जिससे राष्ट्रपति ट्रंप की बांछे खिलना स्वाभाविक है। कह सकते हैं कि हेग सम्मेलन से नाटो को नयी गिज़ा मिली। सम्मेलन सदस्य देशों के बीच मतभेदों को रफ़ू करने में सफल रहा और उसने इस बात की पुष्टि कर दी कि संगठन आगामी समय में रूस की मुश्कें कसने की कवायद में कोई कोर कसर नहीं उठा रखेगा। 

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन चार अप्रैल, सन 1949 को वाशिंगटन-संधि के तहत वाशिंगटन डीसी में स्थापित हुआ था। इसके जरिये अमेरिका विश्वयुद्धोत्तर दौर में योरोपीय शक्तियों के साथ सामूहिक रक्षा-व्यवस्था को अमली जामा पहनाना चाहता था और उसका मकसद था सोवियत संघ के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगाना। पूर्वी योरोप का कम्युनिस्ट ब्लॉक उसके लिये चिंता का विषय था, लिहाजा प्रमुख योरोपीय राष्ट्रों को इसके तंतु-जाल में समेटा गया। इसके मसौदे के मुख्य लेखक थे जॉन डि हिकर्सन। शुरू में इसके सदस्य थे बेल्जियम, कनाडा, डेन्मार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जेमबर्ग, नीदरलैंड, नार्वे, अमेरिका, पुर्तगाल और यूनाइटेड किंगडम। संगठन की स्थापना को पश्चिमी योरोप पर सोवियत रूस के संभावित आक्रमण की पेशबंदी के तौर पर देखा गया। सोवियत संघ की नीतियों ने यूं भी एंग्लो-अमेरिकी धुरी और अनेक योरोपीय देशों की धुकधुकी बढ़ा दी थी। बहरहाल, समय के साथ इसकी कैनोपी फैलती गयी और सन 1952 में ग्रीस और तुर्की इससे जुड़ गये। सोवियत संघ के विघटन के बाद तो इस छतरी के तले आने वाले राष्ट्रों की कतार लग गयी और चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, पोलैंड, बुल्गारिया, एस्टोनिया, लाटविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्वीडन, फिनलैंड, स्लोवाकिया, स्लोवोनिया, अल्बानिया, क्रोएशिया, मोंटेनीग्रो, उत्तरी मैसीडोनिया इसमें सम्मिलित हो गये। शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद यह स्थ्ज्ञिति अमेरिका के लिये बड़ी फायदेमंद थी। बड़ी बात यह थी कि सोवियत संघ द्वारा प्रायोजित और गठित वार्सा-पैक्ट के अनेक देशों ने नाटों का दामन थाम लिया था। अमेरिका अपनी युक्तियों से योरोपीय देशों में रूस का 'हौव्वा' खड़ा करने में सफल रहा और उक्राइना के जरिये उसे रूस को छेंकने का बड़ा अवसर भी मिला गया। 

हेग में हुआ नाटो का शिखर सम्मेलन अपने आशय से अमेरिका के विस्तारवाद की पुष्टि करता है और अमेरिका की सुविचारित और नियोजित भूराजनीतिक और सामरिक व्यूह रचना को दर्शाता है। सम्मेलन में करीब डेढ़ दर्जन गैर नाटो देशों को अमांत्रित करने के पीछे यही रणनीति काम कर रही है। यह अकारण नहीं है कि मक्ट्रनिया की राष्ट्रपति गोर्दाना सिल्जानोव्स्का-दाव्कोवा ने अपने संबोधन में योरोपीय यूनियन के विस्तार की प्रक्रिया को रोकने की बात कही। गौरतलब है कि इसमें योरोपीय यूनियन और सिंगापुर, थाइलैंड, उक्राइना, आस्ट्रिया, आस्ट्रिलिया, आर्मीनिया, फिलिप्पींस, दक्षिण कोरिया, स्विटजरलैंड, जापान, जार्डन, न्यूजीलैंड और अजरबैजान आदि देश भी आमंत्रित थे। जाहिर है कि अमेरिका रूस-चीन धुरी की वैश्विक घेराबंदी करना चाहता है। अमेरिका के लिये नाटो की अहमियत का पता इससे चलता है कि इसके ब्रुसेल्स में तीन असाधारण सम्मेलन हो चुके हैं और उक्राइना पर रूसी हमले के बाद सन 2022 में इसका आभासी-सम्मेलन आयोजित किया गया था। गौरतलब है कि नाटो का मुख्यालय ब्रुसेल्स में स्थित है। 

नाटो के महासचिव मार्क रूटे ने इस बात की पुष्टि कर दी कि कोसोवो, बोस्निया, हर्जेगोविना में नाटो की सेनाएं उपस्थित रहेंगी। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान ने भी कोसोवो की बात की और पश्चिमी बाल्कन क्षेत्र में तुर्की-सैनिकों की मौजूदगी को सही ठहराया। सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी शरीक हुये और उन्होंने भारत-पाक और कोसोवो-सर्बिया जंग में अमेरिकी दखल के साथ-साथ कांगो और रवांडा में संघर्ष का जिक्र किया। ट्रंप की सबसे बड़ी कामयाबी यह रही कि सदस्य राष्ट्र उनके अंतिमेत्थम को मानकर सन 2025 तक अपने जीडीपी का पांच प्रतिशत अंश रक्षा-व्यवस्था में निवेश करने को तैयार हो गये। इसमें 3.5 प्रतिशत राशि मित्र-सेनाओं की रक्षा-आवश्यकताओं और शेष 1.5 फीसद रकम बुनियादी ढाँचे पर खर्च करने पर रजामंदी हुई। 

हेग-सम्मेलन के जरिये अमेरिका को एक बड़ी कामयाबी यह मिली कि सभी सदस्यों ने उक्राइना को अटूट और दीर्घकालिक समर्थन के प्रति वचनबद्धता व्यक्त की। रूस के खिलाफ संघर्ष के लिये उसे सैन्य उपकरण और प्रशिक्षण पर सभी राष्ट्र एकमत दिखे। दस साल पहले के सुरक्षा पर दो प्रतिशत के खर्च को देखें तो उसमें एक-मुश्त ढाई गुना वृद्धि नाटो की आड़ में अमेरिका के सामरिक मंसूबों की अभिव्यक्ति है। वार्ता में नाटो के रूपांतरण की बात भी कही गयी और परस्पर साझेदारी और गठबंधन की मजबूती पर जोर दिया गया। गैर नाटों देशों से साझेदारी के साथ ही नये सदस्यों की भर्ती की बात भी कही गयी। रूस-चीन-ईरान धुरी का मुद्दा भी उठा और नाटो-सदस्यों ने एकजुटता का संकल्प लिया। साफ दिखा कि नाटो-बिरादरी ने पुरानी कटुता को भुला दिया है। नीदरलैंड के साम्राज्ञी और सम्राट के रात्रिभोज ने हेग सम्मेलन के वातावरण को खुशनुमा बना दिया। तय हुआ कि अगला सम्मेलन इस्तांबूल (तुर्किये) और तदंतर तिराना (अल्बानिया) में होगा। नाटो को मजबूती और विस्तार से अमेरिका के वर्चस्व के पाये बिलाशक मजबूत होते हैं, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि युद्ध, भुखमरी, जलवायु-परिवर्तन और असमानता से ग्रस्त विश्व में शांतिकामी शक्तियां निरंतर कमजोर पड़ती जा रही है।

आज की बात

हेडलाइंस

अच्छी खबर

शर्मनाक

भारत

दुनिया