राजेश बादल
अजीब सा सियासी दौर चल रहा है। अपनी चौधराहट बरक़रार रखने के लिए मोहरों की तरह मुल्क़ों का इस्तेमाल किया जा रहा है।यह इस्तेमाल भी उच्चतम शिखर पर जाकर परमाणु युद्ध के कृत्रिम ख़तरे को पैदा करके किया जा रहा है। पहले जंग का माहौल बनाना ,उसे हवा देना और फिर अपने रौब का दुरूपयोग करते हुए युद्ध विराम अथवा समझौते के लिए मजबूर कर देना इन दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का शगल बन गया है। वे केवल युद्ध विराम की बात ही नहीं करते ,बल्कि उसका जबरिया श्रेय भी लूटना चाहते हैं। चाहे उसके हक़दार हों अथवा नहीं। अमेरिकी इतिहास में यह पहला अवसर है,जबकि देश के तमाम राज्य आंतरिक असंतोष की आग में झुलस रहे हैं और राष्ट्रपति दुनिया का ध्यान बँटाने के लिए अन्य राष्ट्रों के कन्धों का दुरूपयोग कर रहे हैं। लॉस एंजिल्स से भड़के दंगों की आग न्यूयॉर्क ,वाशिंगटन ,केलिफोर्निया ,वर्जीनिया ,अटलांटा ,शिकागो ,डेनवर और ऑस्टिन जैसे क्षेत्रों तक फ़ैल गई है। लॉस एंजिल्स के गवर्नर ने तो खुद डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ मुक़दमा चलाने का ऐलान किया है। समूचा अमेरिका राष्ट्रपति की कार्यशैली में तानाशाह की छवि देख रहा है। अमेरिका में इन दिनों हो रहे सारे प्रदर्शनों का नारा है -हमें राजा नहीं , सेवक चाहिए। ट्रंप का काम लोकतंत्र के ख़िलाफ़ है इत्यादि इत्यादि। मगर ट्रंप को इसकी परवाह नहीं है। वे कई देशों में जंग का उन्मादी माहौल बनाने में लगे हैं। वैश्विक मंच पर ऐसे उन्मादी वातावरण के पीछे बेहद गंभीर चेतावनी छिपी है।
आपको याद होगा कि जिस दिन इज़रायल ने ईरान पर ड्रोन और मिसाइल हमले किए ,उस दिन इज़रायल की ओर से कहा गया था कि उसने अमेरिका को पहले ही सूचित कर दिया था।लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि उनका इज़रायल और ईरान के बीच जंग से कोई लेना देना नहीं है न ही उनका राष्ट्र इस युद्ध के पीछे है। इसके कुछ समय बाद ही उन्होंने कहा कि वे ईरान और इज़रायल के बीच मध्यस्थता के लिए तैयार हैं।वे चाहें तो चुटकियों में युद्ध विराम करा सकते हैं। मगर ईरान ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति इससे आगबबूला हो गए। अब वे कह रहे हैं कि तेहरान को अपने विनाश के लिए तैयार रहना चाहिए।ईरान को जिस भाषा में उन्होंने धमकी दी ,वह कोई भी सभ्य समाज उपयोग नहीं करता।उन्होंने कहा कि अगर हम पर किसी भी तरह का हमला किया जाता है, तो हम अपनी पूरी ताक़त से आप पर टूट पड़ेंगे। ऐसे, जैसे पहले कभी नहीं हुआ होगा।अमेरिकीराष्ट्रपति तो यहां तक कह रहे हैं कि इज़रायल चाहे तो ईरान के सर्वोच्च नेता खामनेई को मार सकता है लेकिन उनके कारण इज़रायल रुका हुआ है। ज़ाहिर है कि इस कथन का अर्थ ईरान को धमकाना है।क्या विश्वमंच पर इस बात का विचार नहीं होना चाहिए कि कोई जंग राष्ट्राध्यक्षों के ख़ात्में का इरादा क्यों रखती है ?
किसी भी हिंसक झड़प को जंग के विराट रूप में तब्दील कर देना भी डोनाल्ड ट्रम्प का शगल है।भूलने वाली बात नहीं है कि पहलगाम में पर्यटकों के संहार के बाद भारत ने पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया तो डोनाल्ड ट्रम्प ने उसे तुरंत परमाणु युद्ध की आशंका का विकराल रूप दे दिया। सारे संसार को लगा कि जैसे भारत और पाकिस्तान अब एक दूसरे पर परमाणु हमला करने ही वाले हैं। यह सच है कि हिन्दुस्तान इस आतंकी आक्रमण से बेहद आक्रोश में था और पाकिस्तान को भरपूर सबक़ सिखाने का इरादा रखता था। पर डोनाल्ड ट्रंप ने उसे जी भरकर भुनाया। उन्होंने कम से कम बारह बार कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम उनके कारण ही संभव हुआ। यदि वे ऐसा नहीं करते तो दोनों मुल्क़ परमाणु हथियारों के उपयोग पर उतारू थे। यह सरासर भारत का अपमान था। सारी दुनिया भारत की परमाणु नीति को जानती - समझती है। वह जानती है कि डोनाल्ड ट्रंप ग़ैर ज़िम्मेदार हैं लेकिन भारत नहीं। भारत की ओर से स्पष्ट भी किया गया कि अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत - पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम में कोई भूमिका नहीं हैं। हक़ीक़त तो यह है कि आज तक ऐसा कोई युद्ध विराम दोनों मुल्क़ों के बीच हुआ ही नहीं है। फिर डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसा क्यों कहा ? यह क्यों नहीं माना जाना चाहिए कि उन पर जंग का उन्माद भड़काने ,धमकाने और फिर युद्ध विराम कराने की सनक हरदम सवार रहती है।
ग़ौरतलब है कि जब वे अपनी दूसरी पारी के लिए चुनाव प्रचार कर रहे थे तो उन्होंने साफ़ साफ़ कहा था कि वे चौबीस घंटे के भीतर रूस और यूक्रेन की जंग रुकवा देंगे। उन्होंने तो यूक्रेन से यहाँ तक कहा कि वह रूस के द्वारा जीते गए क्षेत्रों को भूल जाए और इसके आगे नहीं जाए। तब ऐसा लगा कि वे रूस के दोस्त की तरह व्यवहार कर रहे हैं। पर , जब वे राष्ट्रपति पद की शपथ ले चुके और रूस ने उनके बयानों को गंभीरता से नहीं लिया तो उनकी बड़ी किरकिरी हुई। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की तो व्हाइट हाउस में ही ट्रम्प की आँखें खोल आए थे। इसके बाद रूस ने भी उनको खारिज कर दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति की यह अजीब सी मानसिकता है कि वे जंग रुकवाने के विशेषज्ञ और युद्ध विराम के मास्टर बनना चाहते हैं ,लेकिन उनकी पोल खुलती जा रही है। वे सारी दुनिया पर ध्यान दे रहे हैं ,सिर्फ़ अपने देश को छोड़कर। अमेरिका अपने इतिहास के सर्वाधिक ख़राब दौर से गुज़र रहा है । कहीं ऐसा नहीं हो कि डोनाल्ड ट्रंप समूचे संसार में जंगें रुकवाने में लगे रहें और उनके अपने ही देश में कोई उनके नीचे से जाजम खींच ले ।