• डॉ. सुधीर सक्सेना
चंद्राबाबू नायडू ‘विजनरी’ राजनेता हैं। उनके सियासी हुनर का लोहा उनके विपक्षी भी मानते हैं। अपने पहले मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने अपने उपक्रमों से सारी दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया था। उनमें सियासी हुनर है और ग़जब की चपलता भी। इसी के चलते आंध्रपदेश में उनका ‘कम बैक’ संभव हुआ। अपनी वापसी के बाद वह बेहद सधे हुये कदमों से चल रहे हैं, लेकिन वह जब-तब राजनीति के शांत सरोवर में कंकड़ उछाल दिया करते हैं, जिसके फलस्वरूप पानी में उठी लहरें बरबस कयासों को जन्म देती हैं। केन्द्रीय चुनाव आयोग को लिखे उनके ताजा खत और दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री (स्व.) पीवी नरसिंहाराव की भूरि-भूरि प्रशंसा ने राजनीतिक पंडितों को यकबयक अटकलें लगाने को बाध्य कर दिया है।
कांग्रेस के शीर्षस्थ नेताओं में शुमार रहे पामुलपर्ती वेंकट नरसिंहाराव की मुक्त कंठ प्रशंसा का प्रसंग पुराना नहीं है, बल्कि ताजा-ताजा है। नरसिंहाराव गारू का बखान उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में किया। अवसर था प्राइम मिनिस्टर्स म्यूजियम एण्ड लाइब्रेरी में 14 जुलाई को ‘द लाइफ एण्ड लीगेसी ऑफ पीवी नरसिंहाराव’ विषय पर व्याख्यान। विषय के मान से श्रोताओं में जिज्ञासा थी कि बाबू क्या बोलेंगे? वजह यह कि तेलुगुदेशम का इतिहास कांग्रेस के विरोध का इतिहास रहा है। उसका जन्म ही सन 80 के दशक के पूर्वाद्ध में तेलुगु अस्मिता के आधार पर हुआ। चंद्रबाबू नायडू उन्हीं नंदमूरि तारक रामाराव (एनटीआर) के दामाद हैं, जो अपने चमत्कारिक प्रदर्शन से आंध्रप्रदेश को कांग्रेस के जबड़े से बाहर निकाल लाये थे। तेलुगुदेशम के कारण आंध्र में कांग्रेस बार-बार सत्ता से बेदखल हुई। उसे पराजय का गरल पीना पड़ा। उसने अपनों के आघात झेले। वाईएसआर कांग्रेस बनी। कांग्रेस हाशिये में सरकी और अंतत: सन 2024 में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ तो आंध्र के मतदाताओं ने एक बार फिर अनुभवी चंद्रा बाबू नायडू को तरजीह दी और कांग्रेस के लिए अंगूर बेतरह खट्टे रहे। जीत का सेहरा स्वाभाविक तौर पर बाबू के सिर-माथे बँधा।
वहीं बाबू जब पीवी नरसिंहाराव की शान में कसीदे काढ़ते हैं, तो अचरज होना स्वाभविक है। अपने संबोधन में चंद्राबाबू का लहजा सहज और प्रशंसात्मक था। उन्होंने कहा कि नरसिंहाराव जी सच्चे तेलुगु बिड्डा थे, जिन्होंने इस महान देश की नियति की पुनर्रचना की। आज हम उन्हीं के सुधारों का उपभोग कर रहे हैं। अपने उदगारों में उन्होंने आगे कहा कि पीवी विद्वान व्यक्ति थे और उन्हें सत्रह भाषायें आती थीं। वह उन्हें फर्राटे से बोल सकते थे। आज हम बात करते हैं कि हमें हिन्दी क्यों सीखनी चाहिये। तो याद करें कि पीवी ने हिन्दी ही नहीं, सत्रह भाषायें सीखी थीं। पूर्व प्रधानमंत्री से अपने संबंधों का खुलासा करते हुये उन्होंने कहा कि उनके उनसे बहुत अच्छे रिश्ते थे। सन 1991 के पूर्व की बात करें तो लाइसेंस राज ने देश को आर्थिक तौर पर खोखला कर दिया था और विकास की दर तीन-चार प्रतिशत पर अटक गयी थी। फलत: भारत अभूतपूर्व आर्थिक संकट में फंस गया था और विदेशी मुद्रा भंडार अत्यंत निम्न स्तर पर आ गया था। नरसिंहाराव की तुलना चीन के तंग श्याओं फंग के सन 1978 के सुधारों से करते हुये उन्होंने आगे कहा कि नरसिंहाराव ने संकट को पहचाना और सन 1991 में ऐतिहासिक सुधारों का श्री गणेश किया। उन्होंने बखूबी भारत का भविष्य सँवारा। नतीजा सामने है। उनके राजनीतिक चातुर्य का प्रमाण है कि एक अल्पमत सरकार का मुखिया होते हुए भी उन्होंने कम्युनिस्टों, समाजवादियों और पूंजीवादियों में लगभग असंभव सी सहमति कायम की और लाइसेंस राज का खात्मा कर विदेशी पूंजी के निवेश और सन 90 के दशक के मध्य की सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया। उनकी बदौलत भारत ने भुगतान असंतुलन पर काबू पाया, निवेश के द्वार खोले और प्रगति पर अग्रसर हुआ। नरसिंहाराव को आईटी बूम’ का श्रेय देते हुए उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की साहसिक नीतियों की तारीफ की और कहा कि इन नीतियों की बदौलत भारत विश्व की तीसरी अर्थशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय गौरव, वैश्विक सम्मान और दृढ़ वैदेशिक संबंधों के प्रणेता हैं। जनसेवा और प्रगति के लिये स्थायी सरकारों और विजनरी नेतृत्व की पैरवी करते हुये चंद्राबाबू नायडू ने हिन्दी सीखने की हिमायत की। आंध्रप्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने भी उनका अनुमोदन किया। देश के भाषायी- परिदृश्य के मद्देनजर उनका यह रूख मायने रखता है। हाल में महाराष्ट्र में हिन्दी की पाठशालाओं में अनिवार्यता का विरोध और शिवसेना की मराठी की हठधर्मिता के संदर्भ में उनका कथन मायने रखता है। सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, धुर दक्षिणी राज्य तमिलनाडु ने भी हिन्दी को शैक्षिक संस्थाओं में लागू करने के खिलाफ कड़ा रवैया अपना रखा है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्तालिन ने बार-बार हिन्दी को थोपने की खिलाफत की है। ऐसे माहौल में चंद्राबाबू का रवैया उदार, सामयिक और भाषायी ऐक्य का प्रतीक माना जाना चाहिये। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहाराव की प्रशंसा भी उनकी चारित्रिक उदारता, व्यापक दृष्टिकोण और राजनीतिक सदभाव को व्यक्त करती है। बिहार में मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण पर उठे बवाल के बाद उन्होंने केंद्रीय चुनाव आयोग को पत्र लिखकर उससे कैफियत मांगी है। उनका यह कदम उनकी जागरूकता और संवैधानिक व सेक्युलर मूल्यों में आस्था दर्शाता है। अपने भाषण में उन्होंने क्वांटम वैली के लक्ष्य का भी उल्लेख किया और कहा कि भारत में क्वांटम वैली की स्थापना अमेरिका में सिलिकॉन वैली का सही जवाब होगा। उन्होंने कहा कि वह आश्वस्त हैं कि भारत सन 2047 में विश्व में अव्वल होगा और विश्व का नेतृत्व करेगा। इस मौके पर उन्होंने नरसिंहाराव के पुत्र पीवी प्रभाकर राव और पौत्र एनबी सुभाष का सम्मान किया। घटनाक्रम क्या यह नहीं दर्शाता कि आंध्रप्रदेश को नया ‘तेलुगु बिड्डा’ मिल गया है, जो सूबे के कायाकल्प के लिए कृतसंकल्प है और आर्थिक व तकनीकी क्रांति के लिए पूर्ववर्ती तेलुगु-बिड्डा के नक्शे पर चल रहा है?