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हॉट टोपिक
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Added on : 2024-06-09 21:31:14

राजेश बादल
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार देश को मिल चुकी है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी इस सरकार ने जवाहरलाल नेहरू के लगातार तीन बार सरकार बनाने के कीर्तिमान की बराबरी कर ली है। मुल्क़ के मतदाता अब इस मिली जुली सरकार से अनेक परिणाम चाहते हैं। यह ग़ैर वाज़िब नहीं है। जनादेश उन चुनौतियों से निपटने के लिए एनडीए सरकार से अपेक्षा करता है,जो नए भारत में दिनों दिन विकराल होती जा रही हैं।अलबत्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपनी बड़ी चुनौती यही है कि पिछले दो कार्यकालों की तरह उनकी पार्टी अपने दम पर हुक़ूमत में नहीं आई है। इस बार उन्हें सहयोगी दलों को भी ज़िम्मेदारी से साथ लेकर चलना होगा। ज़ाहिर है कि प्राथमिकता की सूची में सर्वसम्मत न्यूनतम साझा कार्यक्रम ही सर्वोपरि होगा। इसका अर्थ यह है कि भारतीय जनता पार्टी की अपनी प्राथमिकताएँ हाशिए पर ही रहेंगीं।
शपथ समारोह का भागीदार बनाने के लिए नई सरकार ने पड़ोसी राष्ट्रों के नायकों को आमंत्रित किया गया ।यह महत्वपूर्ण बात है कि मालदीव के राष्ट्रपति भी इसमें आए।वे भारत विरोधी रवैए के लिए जाने जाते हैं और बीते दिनों अपने इंडिया आउट के फ़ैसले के बारे में भारत में काफी आलोचना का शिकार हुए हैं।वे खुले तौर पर चीन समर्थक हैं।उन्हें न्यौता देकर इस सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के उस कथन का सम्मान किया है,जिसमें उन्होंने कहा था कि हम सब कुछ बदल सकते हैं,लेकिन पड़ोसियों को नहीं। यह भावना नई सरकार की विदेश नीति में झलक सकती है।
इस बार चुनाव के प्रचार अभियान आकाश पर मँहगाई ,बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार के आरोपों के घने बादल मँडराते रहे। दस वर्षों में भारत के लिए यह तीन मुद्दे बड़ी चुनौती बने रहे हैं। नई सरकार के लिए तमाम प्राथमिकताओं से ऊपर इन समस्याओं से निज़ात पाना मोदी मंत्रिमंडल के लिए बेहद ज़रूरी है। यदि इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो अगले चुनाव के दरम्यान यह मुद्दे सरकार के लिए संकट बन सकते हैं। सरकार को सरकारी सेवाओं के दरवाज़े और बड़े करने होंगे तथा किसानों और नौजवानों के लिए ख़ास तौर पर काम करना होगा।
किसी भी सरकार के लिए आम अवाम के दिलों में छबि निर्माण का काम अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक बार जो छबि बन जाती है ,उसे बदलना आसान नहीं होता। जब लोकसभा चुनावों का ऐलान हुआ ,तो धारणा बन रही थी कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार संविधान का सम्मान नहीं करती और उसे बदलने की मंशा रखती है। इसके अलावा उसकी धर्मनिरपेक्ष छबि पर सवाल उठे थे। नरेंद्र मोदी ने चुनाव जीतने के बाद संविधान की प्रति को सर से लगाकर सम्मान देने की भावना का सार्वजनिक इज़हार कर दिया है। धर्मनिरपेक्षता के बारे में उनकी सरकार के कामकाज से ही छबि बदलेगी। यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार में शामिल दो बड़े घटक दल तेलुगुदेशम और जनता दल (यूनाइटेड ) का अपरोक्ष दबाव भी रहेगा। इन दोनों पार्टियों का भारतीय जनता पार्टी के साथ वैचारिक मतभेद रहा है। भले ही वे एन डी ए में शामिल रहे हैं। मगर ,उनका रवैया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पूरे कार्यकाल में सतर्क और सावधान रहने के लिए बाध्य करता रहेगा। नीतीश कुमार और चंद्र बाबू नायडू सियासत में प्रधानमंत्री से वरिष्ठ हैं और सियासी शतरंज की चालों को बख़ूबी समझते हैं। उनको संतुष्ट करना समूचे कार्यकाल में प्रधानमंत्री के लिए एक अलग चुनौती बना रहेगा।

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