राजेश बादल
भारतीय वायुसेना की कार्रवाई दरअसल पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर में की गई है । इसका भारत को अधिकार है क्योंकि यह उसी का इलाक़ा है ।बालाकोट यद्यपि पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर से एकदम सटा हुआ है और हमारे विमानों ने पाक अधिकृत कश्मीर के आसमान में रहते हुए बालाकोट के जैश ठिकाने को नेस्तनाबूद किया है। वैसे भी इस तरह की कार्रवाई में आतंकवादी शिविर ही निशाने पर होते हैं।वे कहीं भी हों।
एक मायने में बांग्लादेश की जंग के बाद यह हिंदुस्तान की सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत है । पुलवामा संहार का उत्तर देने के लिए भारत ने इसी कारण उस क्षेत्र को चुना ,जो पाकिस्तान के क़ब्ज़े में है लेकिन पाकिस्तान का नहीं है। इस नाते उसे अपनी संप्रभुता के उल्लंघन का दावा करने तक का अधिकार नही मिलता ।यह विशुद्ध आतंकवादी ठिकानों पर की गई कार्रवाई है और इसका समर्थन पूरा विश्व करता है । चीन तक इसकी आलोचना नहीं कर सकेगा ।वह इसलिए भी पाक के समर्थन में आ नहीं सकता क्योंकि सुरक्षा परिषद में आतंकवाद विरोधी ताज़ा निंदा प्रस्ताव पर उसके दस्तख़त हैं । चीन अंदरूनी मोर्चे पर वैसे भी इस्लामी चरम पंथियों से जूझ रहा है ।उसकी हालत अच्छी नहीं है । पहले ही चीन में 10 लाख मुसलमानों को जेल में डाल दिया गया है ।
पाकिस्तान के एक और मित्र सउदी अरब के पास पर्याप्त सैनिक शक्ति नहीं है । उसने अपने शाही परिवार की रक्षा तक का काम पाकिस्तानी फौज के सुपुर्द कर रखा है । समय समय पर पाकिस्तानी फौज की वहां ज़रूरत पड़ती रही है । दूसरा भारत को उसका तेल निर्यात मुसीबत में पड़ जाएगा । यह उसकी अर्थ व्यवस्था को संकट में डाल सकता है । भारत से भुगतान का संकट नहीं है ।पाकिस्तान तो तेल की कीमत भी नही चुका सकता और उधार देने की स्थिति में सऊदी अरब नहीं है ।उसने जो भी सहायता की है ,वह उसका पूंजीनिवेश है ।
पाक अधिकृत कश्मीर में पहले से ही पाकिस्तान विरोधी अनेक आंदोलन चल रहे हैं।अब वे और तेज़ हो जाएंगे । वहाँ के लोग पहले ही भारत में विलय या फिर आज़ादी की मांग उठाते रहे हैं ।इसके अलावा पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रान्त बलूचिस्तान में भी अलग होने के लिए आंदोलन तेज होगा । उसके पीछे ईरान की सीमा लगती है । पुलवामा हमले के एक दिन पहले ईरान अपने 27 सैनिकों के मारे जाने से बेहद नाराज है । इस हमले में भी पाकिस्तानी आतंकवादी समूहों का हाथ है ।उसने पाकिस्तान को बदले की कार्रवाई की धमकी दी है ।आतंकवादी गुट पीओके से भाग कर अफ़ग़ान सीमा पर जाएंगे ।वहां अमेरिकी और नॉटो फौज उन्हें नही छोड़ेगी। इससे पाकिस्तानी तालिबान की स्थिति अत्यंत खराब हो जाएगी । उस इलाके में इमरान खान की पार्टी पहले ही इन गुटों को समर्थन देती रही है । पर बदली परिस्थितियों में इमरान खान के हाथ बंधे हैं ।पाकिस्तानी अवाम खुलकर मसूद अज़हर, हाफ़िज़ सईद ,सलाहुद्दीन और हक्कानी नेटवर्क जैसों के खिलाफ अब खुलकर सामने आएगी ।विरोध तो वह पहले से ही कर रही है ।पाकिस्तान साँप छछून्दर की स्थिति में है । इस हमले का विरोध भी नही कर सकता और पूर्ण युद्ध लड़ भी नही सकता और चुप बैठता है तो अपने ही मुल्क़ में हुक़ूमत की किरकिरी । करे तो क्या करे ? हर हाल में मरण ।
राजेश बादल
भारतीय वायुसेना की कार्रवाई दरअसल पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर में की गई है । इसका भारत को अधिकार है क्योंकि यह उसी का इलाक़ा है ।बालाकोट यद्यपि पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर से एकदम सटा हुआ है और हमारे विमानों ने पाक अधिकृत कश्मीर के आसमान में रहते हुए बालाकोट के जैश ठिकाने को नेस्तनाबूद किया है। वैसे भी इस तरह की कार्रवाई में आतंकवादी शिविर ही निशाने पर होते हैं।वे कहीं भी हों।
एक मायने में बांग्लादेश की जंग के बाद यह हिंदुस्तान की सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत है । पुलवामा संहार का उत्तर देने के लिए भारत ने इसी कारण उस क्षेत्र को चुना ,जो पाकिस्तान के क़ब्ज़े में है लेकिन पाकिस्तान का नहीं है। इस नाते उसे अपनी संप्रभुता के उल्लंघन का दावा करने तक का अधिकार नही मिलता ।यह विशुद्ध आतंकवादी ठिकानों पर की गई कार्रवाई है और इसका समर्थन पूरा विश्व करता है । चीन तक इसकी आलोचना नहीं कर सकेगा ।वह इसलिए भी पाक के समर्थन में आ नहीं सकता क्योंकि सुरक्षा परिषद में आतंकवाद विरोधी ताज़ा निंदा प्रस्ताव पर उसके दस्तख़त हैं । चीन अंदरूनी मोर्चे पर वैसे भी इस्लामी चरम पंथियों से जूझ रहा है ।उसकी हालत अच्छी नहीं है । पहले ही चीन में 10 लाख मुसलमानों को जेल में डाल दिया गया है ।
पाकिस्तान के एक और मित्र सउदी अरब के पास पर्याप्त सैनिक शक्ति नहीं है । उसने अपने शाही परिवार की रक्षा तक का काम पाकिस्तानी फौज के सुपुर्द कर रखा है । समय समय पर पाकिस्तानी फौज की वहां ज़रूरत पड़ती रही है । दूसरा भारत को उसका तेल निर्यात मुसीबत में पड़ जाएगा । यह उसकी अर्थ व्यवस्था को संकट में डाल सकता है । भारत से भुगतान का संकट नहीं है ।पाकिस्तान तो तेल की कीमत भी नही चुका सकता और उधार देने की स्थिति में सऊदी अरब नहीं है ।उसने जो भी सहायता की है ,वह उसका पूंजीनिवेश है ।
पाक अधिकृत कश्मीर में पहले से ही पाकिस्तान विरोधी अनेक आंदोलन चल रहे हैं।अब वे और तेज़ हो जाएंगे । वहाँ के लोग पहले ही भारत में विलय या फिर आज़ादी की मांग उठाते रहे हैं ।इसके अलावा पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रान्त बलूचिस्तान में भी अलग होने के लिए आंदोलन तेज होगा । उसके पीछे ईरान की सीमा लगती है । पुलवामा हमले के एक दिन पहले ईरान अपने 27 सैनिकों के मारे जाने से बेहद नाराज है । इस हमले में भी पाकिस्तानी आतंकवादी समूहों का हाथ है ।उसने पाकिस्तान को बदले की कार्रवाई की धमकी दी है ।आतंकवादी गुट पीओके से भाग कर अफ़ग़ान सीमा पर जाएंगे ।वहां अमेरिकी और नॉटो फौज उन्हें नही छोड़ेगी। इससे पाकिस्तानी तालिबान की स्थिति अत्यंत खराब हो जाएगी । उस इलाके में इमरान खान की पार्टी पहले ही इन गुटों को समर्थन देती रही है । पर बदली परिस्थितियों में इमरान खान के हाथ बंधे हैं ।पाकिस्तानी अवाम खुलकर मसूद अज़हर, हाफ़िज़ सईद ,सलाहुद्दीन और हक्कानी नेटवर्क जैसों के खिलाफ अब खुलकर सामने आएगी ।विरोध तो वह पहले से ही कर रही है ।पाकिस्तान साँप छछून्दर की स्थिति में है । इस हमले का विरोध भी नही कर सकता और पूर्ण युद्ध लड़ भी नही सकता और चुप बैठता है तो अपने ही मुल्क़ में हुक़ूमत की किरकिरी । करे तो क्या करे ? हर हाल में मरण ।