डॉ. सुधीर सक्सेना
लगभग पौने दो सौ वर्षों का अंतराल। ऊँगलियों की पोरों अथवा संगणक से सटीक गणना करें तो 172 साल। अवधि इतनी कि चार पीढ़ियाँ गुजर गयीं और पाँचवीं पीढ़ी की मसें भीग रही हैं। तीन सदियों के दामन में फैले हुए इस अंतराल में एक खानदान ऐसा है, जिसकी रगों में देश के लिये मर मिटने का जज्बा रक्त की मानिंद मुसलसल प्रवाहित है। भारतीय सेना की जाँबाज अफसर कर्नल सोफिया कुरैशी इसी खानदान की चौथी पीढ़ी से ताल्लुक रखती है उसकी शोहरत मुल्क की सरहदें लाँघ चुकी है और उसका चेहरा सारी दुनिया के लिये जाना-पहचाना हो चुका है। पहलगाम में पाक-प्रायोजित दहशतगर्द-वारदात के बाद भारत की आतंकवाद-विरोधी अचूक कार्रवाई की ब्रीफिंग के पश्चात कर्नल सोफिया कुरैशी सुर्खियों में है। वह सैन्य-प्रवक्ता ही नहीं, बल्कि भारत की बहादुर फौज का चमकीला चेहरा भी है, जिस पर हिन्दोस्तां को नाज है।
कर्नल सोफिया का वंश-वृक्ष मक्का के प्रसिद्ध कुरैश घराने से जुड़ता है। उसके परिवार के शजरे के बारे में ज्यादा बताना तो कठिन है, किंतु सन 1857 के बाद का ब्यौरा उपलब्ध है। सोफिया के पड़दादा मोहम्मद गौस थे तो ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज में, लेकिन आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के इंकलाबी आहवान पर वह कंपनी बहादुर की खिदमत से तौबा कर आजादी की जंग में कूद पड़े थे। बताते हैं कि उनकी पड़दादी ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की फौज में शरीक होकर कंपनी की फौजों से लोहा लिया था। बहरहाल, सोफिया के दादा मुहम्मद हुसैन ने भारतीय सेना में अपनी सेवायें दीं। वह ब्रिटिश फौज में रहे। तदंतर सोफिया के पिता तोज मोहम्मद कुरैशी पिता के नक्शे-पर चले। इस बीच भारत आजाद हो चुका था। ताज मोहम्मद इंडियन आर्मी में इलेक्ट्रॉनिक एंड मेकेनिकल कोर में कार्यरत रहे। सन 1971 में वह पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में सक्रिय रहे। उनके दो छोटे भाइयों ने सीमा सुरक्षा बल में अपनी सेवायें दी। दादा मोहम्मद हुसैन जहां इंडियन आर्मी में धार्मिक शिक्षक थे, वहीं दोनों चाचा इस्माइल और वली मोहम्मद बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स में सूबेदार रहे। आज की तारीख में सोफिया और उसके पति देानों ही भारतीय सेना में हैं।
इसके पहले कि हम इस परिवार की अगली पीढ़ी के बारे में बात करें, यह शजरा दर्शाता है कि इस परिवार का गुणसूत्र कैसा है? चार पीढ़ियों से संबद्ध सूचनाओं के आधार पर किसी भी शख्स को इस पीढ़ी दर पीढ़ी फौज से जुड़े रहे परिवार के डीएनए के बारे में शको-शुबहा नहीं होना चाहिये और उसके यह एहसास हो जाना चाहिए कि सोफिया का परिवार किस मिट्टी से बना है और उसे इस मुल्क की मिट्टी से कितना लगाव है? जिस खानदान का अगुवा एक सौ बहत्तर साल पहले बादशाह जफर की पंक्तियां : ‘गाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्ते-लंदन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की’ सुनकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़ा हो, उसकी संतानों या घराने की देशभक्ति के बारे में किसी तरह नुक्ताचीं शर्मनाक ही कही जायेगी। गौर करें कि प्रेस-ब्रीफिंग के दौरान सोफिया ने क्या कहा? वह कहती हैं : “मैं मुसलमान हूँ, मगर पाकिस्तानी नहीं। मैं मुसलमान हूँ, मगर आतंकवादी नहीं। आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता। हर आतंकवादी को अपने हाथों से मारने का जिगरा रखती हूँ मैं। वह भी बिना धर्म पूछे।
अब आयें भारत के सामरिक ‘ऑपरेशन-सिंदूर की ब्रीफिंग के लिये चुनी गयी सुश्री सोफिया कुरैशी पर। सोफिया गुजरात में बड़ोदरा में पैदा हुई। स्कूली शिक्षा के बाद वहीं उसने महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय से बायोकेमिस्ट्री में स्नातकोत्तर उपाधि अर्जित की। इसके बाद वह इसी संकाय में पीएचडी करने के मूड में थी, लेकिन इसे वतनपरस्ती का जज्बा कहिये या डीएनए का असर कि उसने भारतीय सेना से जुडने का निश्चय किया। घर में किसी के ऐतराज या उज्र का सवाल ही नहीं था। सन 1999 में उसने कॉर्प्स ऑफ सिंग्नल ज्वाइन किया। अपनी दृढ़ता और शौर्य से उसने आला अफसरों का ध्यान आकृष्ट किया। सन 2016 में तब सुर्खियों में आई, जब उसने बहुराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास में सैनिक दल का नेतृत्व किया। 40 सदस्यीय भारतीय दल की नेत्री सोफिया पहली ऐसी महिला कमांडर थी, जिसने 18 देशों की शांति रक्षक और माइनिंग एक्शन टुकड़ी (फोर्स 18) की अगुवाई की। ऑपरेशन सिंदूर की ब्रीफ्रिंग के लिये व्योमिका सिंह के साथ उसके चयन ने उसके शौर्य और उत्कृष्ट सेवा कार्यों पर मोहर लगा दी। ब्रीफिंग के दरम्यान उसके शांत चित्त, दृढ़ता और स्पष्टता ने लोगों को बेतरह प्रभावित किया और उसे वैश्विक ख्याति से नवाजा।
सोफिया की एक बहन है डॉ. शाइना। सोफिया और शाइना जुड़वां बहने हैं। यूं तो शाइना भी आर्मी कैडेट रही, अलबत्ता वक्त के साथ दोनों बहनों की राहें जुदा हो गयीं। दिलचस्प तौर पर शाइना ने कम सुर्खियां नहीं बटोरीं। अलग-अलग पेशा चुनकर भी दोनों बहनों ने उत्कृष्टता का आग्रह नहीं त्यागा। सोफिया ने जैतूनी हरी ड्रेस से बुलंदियों को छुवा तो शाइना ने अर्थशास्त्री, शूटर, पर्यावरणविद् और सौन्दर्य साम्राज्ञी के तौर पर नाम कमाया। उसने सौन्दर्य स्पर्द्धाओं में शिरकत, सब्ज (ग्रीन) अभियानों, अकादेमिक कार्यों और निशानेबाजी में महारत से लोगों को दाँतों तले ऊँगलियां दबाने को बाध्य कर दिया। शूटिंग के लिये उसे राष्ट्रपति के हाथों स्वर्ण पदक मिला। सन 2018 में उसे गुजरात में एक लाख वृक्ष लगाने पर दादा साहब फाल्के अवार्ड मिला। मिस गुजरात रहने के बाद सन 2017 में वह मिसेज इंडिया अर्थ चुनी गयी और सन 2018 में मिस यूनाइटेड नेशंस। उसने प्रशंसा अर्जित की, सेवा से पदक पाये और नवाचार से सबका ध्यान खींचा। अपनी जुड़वां बहन को जब उसने छोटे पर्दे पर ब्रीफिंग करते हुये देखा तो उसे महारानी लक्ष्मीबाई के जज्बे का खयाल हो आया, जिनके नेतृत्व में लड़ते हुये उनकी पड़दादी ने अपने प्राण निछावर किये थे।
सोफिया सेना में हैं और उनके पति भी सेना में हैं। हम उन्हें कर्नल युगल की संज्ञा दे सकते हैं, क्योंकि पति ताजुद्दीन बागेवाड़ी फौज में कर्नल हैं और झांसी में पदस्थ हैं, जबकि सोफिया की तैनाती जम्मू में है। सोफिया और ताजुद्दीन ने प्रेम विवाह किया है। सोफिया की ससुराल कर्नाटक में बेलगाम जिले में गोकाक में कोन्नूर गाँव में है।
कर्नल बागेवाड़ी मेकेनाइज्ड इंफैंट्री में हैं। इस फौजी युगल का बेटा समीर भी घराने की शौर्य परंपरा के अनुरूप सेना में जाने का ख्वाहिशमंद है। वह एयरफोर्स में जाना चाहता है, तो बेटी हनीमा पायलट बनने की तैयारी कर रही है। आसार उजले हैं कि उनकी मुरादें पूरी होंगी। इस तरह वह घराने की पांचवीं पीढ़ी होगी, जिसके लिए वतन सर्वोपरि है और जिनमें कुर्बानी का ज़ज्बा हिलोरें लेता है। अब आप ही तय करें कि ऐसी आला शख्सियत को ‘आतंकवादियों की बहन’ कहने के क्या मायने हैं और इस विषाक्त मानसिकता के लिये उनके साथ क्या सलूक किया जाना चाहिये?