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हॉट टोपिक
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Added on : 2024-01-25 13:38:51

राजेश बादल 
पाकिस्तान और ईरान के बीच कूटनयिक संबंधों की बहाली के संकेत हैं। दोनों मुल्क़ इस बात पर सहमत हो गए हैं कि एक दूसरे के राजदूत जल्द ही अपना काम शुरू कर देंगे।पहले ईरान ने पाकिस्तान की सीमा में सर्जिकल स्ट्राइक की और पाकिस्तान ने भी उत्तर देने में समय नहीं गंवाया और जवाबी कारर्वाई कर डाली।इतना ही नहीं ,उसने पाकिस्तान से ईरान के राजदूत को देश से निकाल दिया और ईरान से अपने राजदूत को वापस बुला लिया।ताबड़तोड़ इस कार्रवाई से एशिया और मध्यपूर्व के मुल्क़ों में तनाव के बादल मंडराने लगे थे। लेकिन इसी बीच पाकिस्तान ने अचानक यू टर्न लिया। बैक डोर डिप्लोमेसी के ज़रिए ईरान के साथ संवाद स्थापित किया गया और पुरानी स्थिति पर लौटने का फ़ैसला लिया गया।   
सतही तौर पर यह रिश्ते सामान्य बनाने की ठीक ठाक सी कोशिश दिखाई देती है ,लेकिन शिया बाहुल्य ईरान और सुन्नी बाहुल्य पाकिस्तान इस फ़ौरी समझौते पर बहुत भरोसा नहीं कर सकते। शांति बनाए रखने के लिए भले ही एक पहल के रूप में इसे स्वीकार कर लिया जाए ,पर यह निश्चित है कि समस्या का यह स्थायी समाधान नहीं है। इसमें चीन और पाकिस्तान के अपने हितों के मद्देनज़र एक मजबूरी भी छिपी हुई है और इस बात के पक्के संकेत हैं कि चंद रोज़ बाद एक बार फिर दोनों देश आमने सामने होंगे।अलबत्ता फ़ौरी तौर पर शांति के पीछे चीन का हाथ नज़र आता है। चीन के नज़रिए से सोचें तो यह उसकी घोषित नीति है कि वह ईरान, अफ़ग़ानिस्तान,श्रीलंका ,नेपाल,भूटान,म्यांमार और बांग्लादेश में भारतीय हितों को पल्लवित होते नहीं देखना चाहता।
यह भी सचाई है कि ईरान ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान में घुसकर जो सर्जिकल स्ट्राइक की थी ,उसने वास्तव में पाकिस्तान से अधिक चीन को हैरान और परेशान किया था। इसलिए जब पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की ,तो चीन असहज हो गया था।वह चकित था कि पाकिस्तान ने इतनी आक्रामक कार्रवाई क्यों की। पाकिस्तानी सेना ने इस बार तो इस कार्रवाई की चीन को सूचना देने की आवश्यकता भी नहीं समझी।इसीलिए चीन को संदेह हुआ कि पाकिस्तानी सेना के इस पीछे कहीं अमेरिका का हाथ तो नहीं है।चीन के ईरान से भी बेहतर रिश्ते हैं और अमेरिका के साथ दोनों ही सहज और सामान्य नहीं हैं। ईरान और अमेरिका के बीच कड़वाहट तो जगज़ाहिर है।इसलिए जब चीन ने आँखें तरेरीं तो पाकिस्तान के विदेश मंत्री जलील अब्बास ने ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान से फोन पर बात की और पाकिस्तान की ओर से अफ़सोस का इज़हार किया। अब 29 जनवरी को ईरानी विदेश मंत्री पाकिस्तान का दौरा करेंगे। 
आपको याद होगा कि पिछले महीने ईरान के बलुचिस्तानवाले इलाक़े में सिस्तान में आतंकवादी हमले में 22 ईरानी पुलिस अधिकारियों की जान चली गई थी। ईरान का आरोप था कि पाकिस्तान अपने बलूचिस्तान में ईरान विरोधी उग्रवादी गुटों को संरक्षण दे रहा है।ये गुट पाकिस्तान के लिए ख़तरा बन गए हैं। उसने इन्ही गुटों के ठिकानों को केंद्र में रखकर हमला किया था ,उत्तर में पाकिस्तान ने कहा था कि ईरान के दक्षिण इलाक़े में उन बलूच उग्रवादियों के अड्डे हैं ,जो दशकों से बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग करने का हिंसक आंदोलन चला रहे हैं।पाकिस्तान यह भी आरोप लगाता रहा है कि बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन के पीछे भारत और ईरान समर्थन देते रहे हैं। यहाँ से इस मामले में भारतीय हितों की बात शुरू होती है। इसी इलाक़े में चीन ने ग्वादर बंदरगाह बनाया है और ग्वादर  चीन की भारतीय क्षेत्र के उसी तरह आक्रामक घेराबंदी का हिस्सा है ,जैसा कि श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह। ग्वादर बंदरगाह से यक़ीनन भारत की सुरक्षा चिंताएँ बढ़ती हैं। इसलिए भारत ने ग्वादर के पीछे ईरान के समंदर में चाबहार बंदरगाह का निर्माण किया था। इससे वह अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान और ग्वादर में चीन की प्रत्येक गतिविधि पर निगरानी रख सकता है। लेकिन यह चीन और पाकिस्तान दोनों को ही रास नहीं आया। इस बंदरगाह से अमेरिका भी सहज नहीं था क्योंकि वह सैनिक अभियान  को ध्यान में रखते हुए ईरान को अन्य देशों से सहायता पहुँचाने का कोई रास्ता नहीं खुला रखना चाहता। अमेरिका की इस मंशा को देखते हुए भारत ने इस बंदरगाह का न्यूनतम उपयोग करना शुरू कर दिया है। यह भारतीय हितों के प्रतिकूल है। लेकिन भारत की स्थिति त्रिशंकु जैसी है। वह ईरान से बेहतर रिश्ते बनाए रखना चाहता है और चीन को सीमा में रहने के लिए अमेरिका से एक सीमा के बाद संबंधों में जोख़िम नहीं उठा सकता।उधर चीन के लिए आवश्यक था कि वह ईरान और पाकिस्तान के बिगड़ते संबंधों की वजह से भारत और ईरान को निकट नहीं आने दे। 
इस तरह इस उप महाद्वीप में तीनों बड़े देशों के अपने अपने वैदेशिक नीति के अपने अपने द्वंद्व हैं। चीन ,अमेरिका और भारत अपने अपने हालातों को ध्यान में रखते हुए ईरान  और पाकिस्तान को एक सीमा तक ही संबंध बिगाड़ने की छूट दे सकते हैं। यह बात पाकिस्तान और ईरान को भी समझनी होगी।

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