सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव तैयािरयां शुरू हो गई हैं। खास तौर पर महिला वोटर्स की संख्या में इजाफा दिखा रहा है कि वे पुरुषों के बराबर पहुंचने वाली हैं। संसद में भागीदारी की बात करें, तो उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। सदी के पहले चुनाव 2004 में हुए थे। उसके बाद से दलों ने महिला उम्मीदवारों को भी तरजीह देनी शुरू की है। यही वजह रही कि 2004 की तुलना में 2009 में 56% ज्यादा महिलाओं को टिकट दिए गए। इनमें से महज 10% ही जीत पाईं। 2004 की तुलना में 2014 में 88% ज्यादा महिलाओं ने चुनाव लड़ा, 61 ने जीत हासिल की। 2004 की तुलना में देखें तो महिलाओं की जीत का आंकड़ महज 35% ही बढ़ा है।

 

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Added on : 2019-03-19 19:53:15

सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव तैयािरयां शुरू हो गई हैं। खास तौर पर महिला वोटर्स की संख्या में इजाफा दिखा रहा है कि वे पुरुषों के बराबर पहुंचने वाली हैं। संसद में भागीदारी की बात करें, तो उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। सदी के पहले चुनाव 2004 में हुए थे। उसके बाद से दलों ने महिला उम्मीदवारों को भी तरजीह देनी शुरू की है। यही वजह रही कि 2004 की तुलना में 2009 में 56% ज्यादा महिलाओं को टिकट दिए गए। इनमें से महज 10% ही जीत पाईं। 2004 की तुलना में 2014 में 88% ज्यादा महिलाओं ने चुनाव लड़ा, 61 ने जीत हासिल की। 2004 की तुलना में देखें तो महिलाओं की जीत का आंकड़ महज 35% ही बढ़ा है।

 

सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव तैयािरयां शुरू हो गई हैं। खास तौर पर महिला वोटर्स की संख्या में इजाफा दिखा रहा है कि वे पुरुषों के बराबर पहुंचने वाली हैं। संसद में भागीदारी की बात करें, तो उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। सदी के पहले चुनाव 2004 में हुए थे। उसके बाद से दलों ने महिला उम्मीदवारों को भी तरजीह देनी शुरू की है। यही वजह रही कि 2004 की तुलना में 2009 में 56% ज्यादा महिलाओं को टिकट दिए गए। इनमें से महज 10% ही जीत पाईं। 2004 की तुलना में 2014 में 88% ज्यादा महिलाओं ने चुनाव लड़ा, 61 ने जीत हासिल की। 2004 की तुलना में देखें तो महिलाओं की जीत का आंकड़ महज 35% ही बढ़ा है।

 

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