• डॉ. सुधीर सक्सेना
बांग्लादेश हमारा पड़ोसी राष्ट्र है; सरसब्ज,उर्वरा और सदानीरा नदी प्रणाली से समृद्ध राष्ट्र। चतुर्दिक भारत और अंशत: म्यांमार से घिरा यह राष्ट्र इतिहास में अलग-अलग त्रासद दौरों से गुजरा है। इसका इतिहास शोषण, दमन, अत्याचार और खूंरेजी से बिंधा हुआ है। इन दिनों इस देश में कुछ अलग ही घट रहा है। सांप्रदायिक और अराजक शक्तियां सिर उठा रही हैं। इतिहास को खारिज़ अथवा विकृत करने का वीभत्स दौर जारी है। कुत्सित और प्रतिगामी ताकतों के चलते बांग्लादेश बदलापुर में तब्दील हो रहा है। देश में कठमुल्ले हावी हैं । अल्पसंख्यक यानि हिन्दुओं की आबादी सात-आठ प्रतिशत पर आकर अटक गयी है, जो कभी 20-22 फीसद हुआ करती थी। उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश की शासक रही शेख हसीना वाजेद ने तख्तापलट के बाद दिल्ली में शरण ले रखी है और वहां सत्ता की बागडोर नोबुल विजेता डॉ. मोहम्मद यूनुस के हाथों में है,जिन्होंने माइक्रो फाइनेंसिंग के ज़रिए बांग्लादेश में। सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन में बड़ी भूमिका निभायी थी। यद्यपि उन्हें अपदस्थ करने की हाल की खबरें फर्जी साबित हुईं, लेकिन सूचनाएं दर्शाती हैं कि वे एक निर्बल शासक हैं और सांप्रदायिक तथा पुनरूत्थानवादी ताकतें परिदृश्य में हावी हैं।
शेख मुजीबुर्रहमान के बिना स्वतंत्र और सार्वभौम बांग्लादेश राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती। प्रेम और आदर से वह बंग-बंधु कहलाये। 17 मार्च, सन 1920 को जनमे बंगबंधु की 15 अगस्त, सन 1975 को ढाका में उनके आवास में हत्या कर दी गयी। वह बांग्लादेश के राष्ट्रपिता थे, लेकिन आज बांग्लादेश में उस हर चीज को मिटा देने का अभियान चल रहा है, जो उनकी या उनकी बेटी शेख हसीना वाजेद की याद दिलाती है अथवा उनसे जुड़ी हुईं है। खेल सारे के सारे बदल डालूंगा की तर्ज पर हो रहा है। मुजीब से राष्ट्रपिता का सम्मनित ओहदा छीन लिया गया है। अब बांग्लादेश बिना राष्ट्रपिता का अभागा राष्ट्र है। बांग्लादेश के राष्ट्रीय बैंक ने नोटों के नये डिजाइन तैयार किये हैं। अब पांच, दस, सौ, दो सौ और पांच सौ टका के नोटों से शेख मुजीब की तस्वीर गायब है।
मामला शेख मुजीब तक ही सीमित नहीं है। राष्ट्र कवि काजी नजरूल इस्लाम भी उसके शिकार बने हैं। 'अग्नि-वीणा' के इस महान विद्रोही-कोबि' को कौन नहीं जानता? उनकी ख्याति वैश्विक है। उन्होंने स्वयं कहा था, "भले ही मैं बंगाल के समाज में पैदा हुआ हूं, लेकिन मैं सिर्फ इस देश का, इस समाज का नहीं हूं। मैं पूरी दुनिया का हूं।" यह महान कवि ढाका विश्वविद्यालय के प्रांगण में चिरनिद्रा में लीन है। लेकिन आज युवा वर्ग काजी नजरूल इस्लाम नहीं, वरन उस नाहिद इस्लाम से अनुप्रेरित है, जो तुर्श जुबां है और जिसने बांग्लादेश नेशनल सिटिजेन की स्थापना कर नया बांग्लादेश बनाने का वायदा किया है। जाहिद एण्ड कंपनी को न तो शेख हसीना का नाम भाता है और न ही अवामी लीग का चुनाव आयोग ने लीग का पंजीकरण रद्द कर दिया है, फलत: लीग अब चुनावों में भाग नहीं ले सकेगी। इस बीच विशेष न्यायाधिकरण में लीग के नेताओं पर मुकदमे चल रहे हैं। देखना होगा कि पंचाट उनके खिलाफ क्या फैसले देता है? शेख हसीना के खिलाफ भी हत्या और षडयंत्र आदि के पांच मामलों में आरोप तय हुये हैं। उनका स्वदेश लौटना संभव नहीं लगता। उन्हें निर्वासन में रहना होगा। यह तय है कि अभियोजन का यह खेल लंब चलेगा। इस बीच डॉ. यूनुस की अंतरिम सरकार ने अवामी लीग की गतिविधियों-उनकी बैठकों, सभाओं, सम्मेलनों, जुलूसों आदि पर पाबंदी लगा दी है। उसके नेताओं के बयानों के ऑनलाइन प्रचार, प्रकाशनों और वितरण पर भी प्रतिबंध है। स्पष्ट है कि अगला चुनाव बिना अवामी लीग के होगा। यक्ष प्रश्न है कि आगामी चुनाव का स्वरूप नया होगा? उसमें सेना की भूमिका क्या होगी? और छात्र नेताओं का रूख क्या होगा? डॉ. यूनुस ने ऐलान किया है कि चुनाव अगले साल यानि सन 2026 के अप्रैल माह में पहले पखवाड़े में होंगे, लेकिन नेताओं के सब्र का प्याला छलक रहा है। नाहिद इस्लाम की नवजात पार्टी के जनरल सेक्रेट्री मिर्जा फखरूल इस्लाम आलमगीर ने कहा कि डॉ. यूनुस के ऐलान पूरा मुल्क हैरान और मायूस है। उन्होंने कहा कि हमें दिसंबर में इलेक्शन की उम्मीद थी? बीएनपी के विपरीत बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी और इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश ने अंतरिम-राष्ट्रपति की घोषणा का स्वागत कियाहे। उनका कहना है कि इससे देश को अनिश्चितता से मुक्ति मिलेगी।
तकदीर से राष्ट्रपति बने डॉ. यूनुस इन दिनों तदबीरों में मशगूल हैं। उनके पास दस महिनों की मोहलत है। अप्रैल में चुनाव के बचाव में वह मशीनरी में सुधार की बात करते हैं। इसमें शक नही कि बांग्लादेश में सब कुछ पटरी से उतर गया है और ढर्रा बिगड़ा हुआ है, लेकिन डॉ. यूनुस के पास कोई रोडमैप नजर नहीं आता। कहना कठिन है कि चुनाव शांतिपूर्वक और निष्पक्ष हो सकेंगे। छात्र नेताओं और बीएनपी में टकराव के भी आसार हैं। फौज के अपने हित हैं और मजहबी तत्वों के अलग। हालात पेचीदा हैं और मुसीबतों की ओर संकते करते हैं। सेना प्रमुख जनरल वाकर उज्जमां ने साफ कहकर कि सेना किसी का भी संप्रभुता से समझौते की इजाजत नहीं देगी, इरादे स्पष्ट कर दिये हैं। इस बीच यह मांग भी उठी है कि पीपुल्स रिपब्लिक आफ बांग्लादेश का नाम बदल कर पीपुल्स वेल्फेयर स्टेट आफ बांग्लादेश कर दिया जाये।