राजेश बादल
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने कल भारत और पाकिस्तान के बीच गंभीर तनाव के बीच बंद कमरे में बैठक तो कर ली , लेकिन उसका निष्कर्ष नहीं निकला।सिवाय इसके कि पाकिस्तान ने भारत पर लगातार भड़काने वाले बयान देने का आरोप लगाया। उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे वाली कहावत इस संदर्भ में प्रमाणित हो रही है।नई सदी में पिछले पच्चीस बरस के दौरान और उससे पहले भी हिन्दुस्तान में जितने भी आतंकवादी आक्रमण हुए हैं,उन सबमें पाकिस्तानी सेना,वहाँ की ख़ुफ़िया एजेंसी आई एस आई और वहाँ के सियासतदानों का हाथ पाया गया है। आज भी वहाँ के हुक़्मरान छाती ठोक कर कहते हैं कि वे भारत के विरुद्ध उग्रवाद को संरक्षण देते हैं।ऐसे देश के समर्थन में संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् कैसे आ सकती थी ?एक दिन पहले हुई इस बैठक का यदि कोई मामूली सा महत्व था तो यही कि पाकिस्तान इन दिनों सुरक्षा परिषद् का कुछ समय के लिए सदस्य है। इसलिए उसकी प्रार्थना पर परिषद् को बैठक जैसा कुछ तो करना ही था। परिषद् की यह बैठक मुख्य कक्ष में नहीं,बल्कि बाहर दरवाज़ा बंद बातचीत कक्ष में हुई।न तो इसके बाद पाकिस्तान के पक्ष में कोई बयान जारी किया गया और न ही कोई प्रस्ताव पारित किया गया। माना जा सकता है कि पंद्रह राष्ट्रों की हाज़िरी में हुई बैठक को रिकॉर्ड में नहीं रखा जाएगा। पाकिस्तान मुदित है कि उसके निवेदन पर कुछ देश चाय पीने के लिए मिल लिए। यानी कटोरे के पानी में चांद की छबि देखकर ही पाक फूला नहीं समा रहा है मानो उसे चांद मिल गया है।
मगर इस बैठक के बारे में प्राप्त कई सूचनाएँ पाकिस्तान को परेशान करने वाली हैं। सबसे पहले तो पाकिस्तान को नसीहत दी गई कि वह ऊटपटाँग इल्ज़ाम लगाना बंद करे। पाकिस्तान का कहना था कि भारत ने पहलगाम का हमला ख़ुद ही कराया। डेढ़ घंटे चली इस बैठक में सदस्य देश भड़के और बोले कि पाकिस्तान को इस तरह के ऊलजलूल बयानों से बचना चाहिए। उसे यह भी नेक सलाह दी गई कि भारत के साथ वह अपने सारे मसले बातचीत के ज़रिए निपटाए और बाक़ी मुल्क़ों का समय ख़राब नहीं करे। सभी सदस्य देशों ने बीते दो दिन में पाकिस्तान के दो मिसाइल परीक्षण करने पर चिंता का इज़हार किया। एक अंतर्राष्ट्रीय संवाद समिति का कहना है कि सदस्यों ने पाकिस्तान का कोई भी आरोप स्वीकार नहीं किया। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र के मुखिया एंटोनियो गुटेरेस ने दोनों राष्ट्रों से संयम की अपील की थी। पाकिस्तानी राजदूत इफ़्तिख़ार अहमद बैठक के बाद खिसियाए हुए थे।इसका सुबूत उनके इस कथन से मिलता है कि पाकिस्तान जो चाहता था ,वह उसे मिल गया है। कोई उनसे पूछे कि आख़िर उन्हें क्या मिला है ?
दरअसल इस बैठक के बहाने पाकिस्तान ने समूचे संसार के सामने यह सवाल रखा है कि भड़काऊ बयान देने और हिंसा को हथियार बनाने वाले एक आतंकवादी देश से यह दुनिया कैसे निबटे ? एक नक़ली पाकिस्तान से विश्व असली प्रश्नों के उत्तर चाहता है।यह पाकिस्तान बार बार कश्मीर में हिंसा को समर्थन देते हुए उसे स्वतंत्रता संग्राम कहता है ,आज़ादी के बाद चार छोटी - बड़ी जंगें कश्मीर के नाम पर लड़ चुका है ,लाल क़िले पर हमला कराता है ,भारतीय लोकतंत्र की सर्वोच्च पंचायत संसद पर हमला कराता है ,जम्मू के रघुनाथ मंदिर और गुजरात में अक्षरधाम पर हमले कराता है,कारगिल में छोटी जंग लड़ता है ,मुंबई में बम धमाके कराता है,उड़ी में सेना के क़ाफ़िले पर हमला कराता है ,पठानकोट में सेना शिविर पर हमला कराता है,पुलवामा में सुरक्षा बलों पर हमला कराता है और पहलगाम में पर्यटकों पर हमला कराता है और यही पाकिस्तान परमाणु बम गिराने की बार बार धौंस देता है।ऐसा उन्मादी और वहशी मुल्क़ सभ्य संसार में बर्दाश्त किया जा रहा है। पाकिस्तान ऐसा क्यों करता है और दुनिया उसकी इन हरकतों पर चुप क्यों है ?इस सन्दर्भ में संयुक्त राष्ट्र के मुखिया एंटोनियो गुटेरेस का आधा बयान निश्चित रूप से चिंता में डालने वाला है। उन्होंने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र संघ दोनों ही देशों के प्रति अपने शांति मिशन में सहयोग देने के लिए आभार व्यक्त करता है। क्या किसी देश की समग्र भूमिका की समीक्षा नहीं की जानी चाहिए ? वह आबादी के मान से विश्व के दूसरे स्थान के देश की आबादी की शांति भंग करता है और अपने आचरण में सुधार के लिए कोई क़दम नहीं उठाना चाहता।उसका दोहरा रवैया विकसित राष्ट्र और यूरोपीय समुदाय कैसे मंज़ूर कर सकते हैं ?
सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान के आतंकवाद को पालने संबंधी स्वीकारोक्ति और परमाणु बम की धमकियाँ क्यों देता है ? उत्तर यह है कि पाक की आर्थिक सेहत इन दिनों इतनी भारी भरकम सेना के रख रखाव में सक्षम नहीं है।वह अपने लिए कितने देशों से हथियारों पर निर्भर रह सकता है ? चीन और तुर्किए का नाम आप ले सकते हैं ,मगर चीन मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय ध्रुवीकरण और समीकरण के चलते पाकिस्तान को हथियार देने की भूल शायद ही करेगा।यदि पाकिस्तान ने परमाणु हथियारों का उपयोग किया तो फिर तुर्किए और चीन के लिए उसका समर्थन करना नामुमकिन होगा। क्या पाकिस्तान इसे नहीं समझ रहा होगा। फिर परमाणु हथियारों की सीमा में उसके अपने इलाक़े क्यों नहीं आएँगे ? उसका परमाणु बम भारत में जिन क्षेत्रों पर गिरेगा ,उसमें क्या अल्पसंख्यक समुदाय नहीं होगा ? फिर वहाँ उसका इस्लाम कहाँ जाएगा ? ध्यान दीजिए कि भारत ने कभी भी अपनी परमाणु शक्ति को लेकर विध्वंसात्मक बयान नहीं दिया है।जापान के हिरोशिमा - नागासाकी पर अमेरिका के परमाणु बम गिराने के बाद क्या हाल हुआ था,यह हम भूले नहीं हैं। यदि पाक ने यह नापाक क़दम उठाया तो कई दशकों तक मानवता के ख़िलाफ़ क्रूर कलंक का टीका उसके चेहरे पर लगा रहेगा और वह एक बर्बर बियाबान में भटकने पर मजबूर हो जाएगा। संसार उस हमलावर पाकिस्तान के साथ क्या रिश्ता रखना चाहेगा ? अंतिम बात यह कि यदि उसने ऐसा किया तो फिर भारत को कौन रोक सकेगा ? याने दोनों सूरतों में पाकिस्तान का विनाश सुनिश्चित है।