राजेश बादल
सत्ता का नशा शायद ऐसा ही होता है।षड्यंत्रपूर्वक जिन लोगों ने बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख़ हसीना वाजेद को हटाया,उन्होंने मुल्क़ में जल्द से जल्द ज़म्हूरियत बहाल करने का वादा किया था।नोबेल से सम्मानित मोहम्मद यूनुस को फ़ौरी तौर पर कामचलाऊ ज़िम्मेदारी सौंपी गई।उन्होंने भी तीन महीने में देश में नए चुनाव कराने की बात कही। तब से महीनों बीत चुके हैं,मोहम्मद यूनुस चुनाव कराने का नाम नहीं ले रहे हैं।बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वक़ार उज़ जमां ने यूनुस सरकार को अवैध बताया है और धमकाया है कि यदि यूनुस ने इस बरस दिसंबर तक लोकतंत्र बहाल नहीं किया तो उनको हटा दिया जाएगा।जनरल वक़ार उज़ ज़मान का कहना है कि मुल्क़ के भविष्य का फ़ैसला निर्वाचन के ज़रिए चुनी गई सरकार ही कर सकती है।यूनुस बिना संवैधानिक पद पर बैठे हुए,बिना चुनाव लड़े गंभीर नीति विषयक निर्णय ले रहे हैं।यह अनुचित है।पहले यूनुस ने 2025 में नए निर्वाचन कराने का ऐलान किया था।अब वे कह रहे हैं कि 2026 में इन्तख़ाबात कराएँगे।इससे वही लोग भड़के हुए हैं, जिन्होंने शेख़ हसीना वाजेद का तख़्ता पलटा था।इनमें छात्र आंदोलनकारी,सेना और बांग्ला नेशनलिस्ट पार्टी ( बी एन पी ) शामिल हैं।इस पार्टी की मुखिया बेग़म ख़ालिदा ज़िया हैं।यदि चुनाव होते हैं तो उनका सत्ता में आना तय है। बेसब्री से वे अपनी ताजपोशी का इंतज़ार कर रही हैं।उनकी ज़िंदगी का यह सुनहरा और संभवतया आखिरी अवसर है। पहली बार वे ऐसे चुनाव में शिरक़त करेंगीं,जिनमें अवामी लीग और उनकी मुखिया शेख़ हसीना वाजेद मुक़ाबले में नहीं होंगीं। यानी उनके चुनाव जीतने का रास्ता एकदम साफ़ है। वे तो अब तक स्वयं को प्रधानमंत्री पद पर काम करते हुए देखना चाहती थीं ,लेकिन मोहम्मद यूनुस ने सारा खेल बिगाड़ दिया। अब मुल्क़ की अवाम,फ़ौज़,छात्र और प्रतिपक्ष सभी महसूस कर रहे हैं कि अमेरिका के इशारे पर नाचने वाले गिरोह ने उनको ठग लिया है। कुछ बिचौलियों ने मोहम्मद यूनुस को इस्तीफ़ा देने से रोक दिया और सेना को मना लिया।यही बिचौलिए यूनुस के इर्द गिर्द रहते हुए हुक़ूमत का आनंद ले रहे हैं।दूसरी ओर यूनुस सरकार आम अवाम की समस्याएँ हल करने में नाक़ाम रही है। मँहगाई और बेरोज़गारी चरम पर हैं।औद्योगिक उत्पादन लगभग ठप्प सा है।
दरअसल परदे के पीछे की कहानी कुछ और ही है।अमेरिका जानता है कि उसके लिए बिना चुनाव जीते मुख्य सलाहकार की गद्दी पर बैठे मोहम्मद यूनुस ज़्यादा फ़ायदेमंद हैं।न तो वे चुनाव जीतकर आए हैं और न बांग्लादेश के संविधान से बंधे हैं।इसके उलट बेग़म ख़ालिदा जिया पर वह कैसे भरोसा करेगा,क्योंकि वह तो चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनेंगीं।इसलिए यह आवश्यक नहीं कि वे अमेरिका के हितों की रक्षा करें।शेख़ हसीना वाजेद को तो उसने हटवाया ही इसलिए था कि उन्होंने चीन पर निगरानी के लिए सेंट मार्टिन द्वीप में अमेरिका को सैनिक अड्डा बनाने की इजाज़त नहीं दी थी।इस तरह दोनों बेग़में अमेरिका का स्वार्थ सिद्ध नहीं कर सकतीं। फिर बिना चुनाव के चल रही मोहम्मद यूनुस की सरकार क्या बुरी है ? यह सरकार उसके इशारे पर नाचेगी। भारत और चीन दोनों पड़ोसी महादेशों को तनाव में डाल कर रख सकती है और पाकिस्तान को भी प्रसन्न रख सकती है।कौन नहीं जानता कि अमेरिका के इशारे पर ही बांग्लादेश पाकिस्तान के निकट गया था।यूनुस ने भारत से रिश्ते इसी वजह से बिगाड़े। अब भारत ने बांग्लादेश के साथ तनिक सख़्ती की तो उसके हाथ पाँव फूले हुए हैं।भारत में अवैध रूप से रह रहे क़रीब 3 करोड़ बांग्लादेशी अपने देश वापस भेजे रहे हैं तो इससे भी मोहम्मद यूनुस को दिक़्क़त हो रही है।उनके लिए वे न तो घर के दरवाज़े बंद कर सकते हैं और न ही उन्हें रोक सकते हैं।अलबत्ता बांग्लादेश की सेना पर अमेरिका की पकड़ इतनी मज़बूत नहीं है,जितना कि पाकिस्तान की सेना की अपने देश में ।
इस प्रसंग में कॉक्स बाज़ार का ज़िक्र भी ज़रूरी है।यह बांग्लादेश का एक ख़ूबसूरत तटीय शहर है।यह समंदर के लगभग 120 किलोमीटर लंबे किनारे पर बसा हुआ है।मगर इस शहर की पहचान संसार के सबसे बड़े शरणार्थी शहर की है।यहाँ 13 लाख से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी हैं,जो म्यांमार से आकर बस गए हैं।यह रोहिंग्या मुल्क़ की सुरक्षा और आर्थिक संसाधनों के हिसाब से मुसीबत बन गए हैं।सेना और यूनुस सरकार इस मामले में आमने सामने हैं। सेनाध्यक्ष बांग्लादेश में रोहिंग्याओं की उपस्थिति के ख़िलाफ़ हैं।मोहम्मद यूनुस म्यांमार के हिंसा पीड़ित राखाइन प्रान्त से कॉक्स बाज़ार को जोड़ने वाले एक गलियारे का निर्माण करना चाहते हैं।पर जनरल वक़ार उज़ ज़मान इसके ख़िलाफ़ हैं।यह मसला भी दोनों के बीच गहराए मतभेदों का कारण है।मोहम्मद यूनुस अपने सेनाध्यक्ष पर संदेह भी करते हैं।उनका आरोप है कि बांग्लादेश में जो भी चल रहा है,उसके पीछे भारत का हाथ है।भारत के कहने पर सेना वहाँ चुनाव कराने पर ज़ोर दे रही है।बांग्लादेश में बार बार लोकतंत्र की बात इसीलिए उठाई जाती है।सोच के मामले में मोहम्मद यूनुस असल में पाकिस्तान के ज़्यादा क़रीब हैं और सेनाध्यक्ष वक़ार उज़ ज़मान भारतीय लोकतंत्र को पसंद करते हैं।यूनुस के सेनाध्यक्ष पर भरोसा नहीं करने का एक कारण यह भी है कि सेनाध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना वाजेद की चचेरी बहन के पति हैं और बिना रक्तपात के उन्होंने ही शेख़ हसीना हो भारत भेजने की व्यवस्था की थी।यूनुस चाहते हैं कि शेख़ हसीना को गिरफ़्तार करके बांग्लादेश लाया जाए।क्योंकि यूनुस को शेख़ हसीना के कार्य काल में काफी परेशान किया गया था।इसका लाभ उन्होंने अमेरिका से नज़दीकी बढ़ाने में लिया।यूनुस को लगता है कि वक़ार उज़ ज़मान शेख़ हसीना के मामले में नरम हैं।वैसे तो वक़ार उज़ ज़मान की गिनती क़ाबिल फौजियों में होती है,लेकिन क़रीबी रिश्ते के कारण भी शेख़ हसीना ने उनको बहुत आगे बढ़ाया।तीन साल के लिए सेनाध्यक्ष भी उन्होंने ही बनाया था।