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Added on : 2019-08-31 15:10:20

अमृता प्रीतम  प्रसिद्ध कवयित्री, उपन्यासकार और निबंधकार थीं, जो 20वीं सदी की पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री थीं. आज उनकी 100वीं जयंती है. आज ही के रोज उनका जन्म  31 अगस्त, 1919 को गुजरांवाला, पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था.  उनकी 100वीं जयंती पर गूगल ने एक बहुत ही प्यारा सा डूडल उन्हें समर्पित किया है. गूगल ने डूडल को बेहद खास अंदाज में बनाया है. जिसमें एक लड़की सूट सलवार पहनकर और सिर पर दुपट्टा लिए कुछ लिख रही है. आपको बता दें, अमृता प्रीतम अपने समय की मशहूर लेखिकाओं में से एक थीं. आइए जानते हैं उनके और उनकी रचनाओं के बारे में.

बचपन से था लिखने का शौक

अमृता प्रीतम जब किशोरावस्था में थी तभी से ही पंजाबी में  कविता, कहानी और निबंध लिखना लिखना शुरू कर दिया.  जब वह 11 साल की हुई उनके सिर से मां आंचल छीन गया. मां के निधन होने के बाद कम उम्र में ही उनके कंधों पर जिम्मेदारी आ गई.

16 साल की उम्र में प्रकाशित हुआ पहला संकलन  

अमृता प्रीतम उन विरले साहित्यकारों में से है जिनका पहला संकलन 16 साल की आयु में प्रकाशित हुआ था. जब 1947 में विभाजन का दौर आया. उस दौर में उन्होंने विभाजन का दर्द सहा था, और इसे बहुत क़रीब से महसूस किया था, इनकी कई कहानियों में आप इस दर्द को स्वयं महसूस कर सकते हैं.

विभाजन के समय इनका परिवार दिल्ली में आकर बस गया. अब इन्होंने पंजाबी के साथ-साथ हिंदी में भी लिखना शुरू किया. बता दें, उनकी शादी 16 साल की उम्र में एक संपादक से हुई. जिसके बाद साल 1960 में उनका तलाक हो गया.

आपको बता दें, अमृता प्रीतम ने कुल मिलाकर लगभग 100 पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है. अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं, जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ.

सम्मान और पुरस्कार

अमृता जी को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया, जिनमें प्रमुख हैं 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1958 में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कार, 1988 में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार (अंतरराष्ट्रीय) और 1982 में भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार.

वे पहली महिला थीं जिन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. साथ ही साथ वे पहली पंजाबी महिला थीं जिन्हें 1969 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया.

हो चुकी हैं इन पुरस्कारों से सम्मानित

- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1956)

- पद्मश्री (1969)

- डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (दिल्ली युनिवर्सिटी- 1973)

- डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (जबलपुर युनिवर्सिटी- 1973)

- बल्गारिया वैरोव पुरस्कार (बुल्गारिया – 1988)

भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982)

- डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (विश्व भारती शांतिनिकेतन- 1987)

- फ्रांस सरकार द्वारा सम्मान (1987)

- पद्म विभूषण (2004)

जब दुनिया से चली गई एक शानदार लेखिका

31 अक्टूबर 2005 का वो दिन था जब अमृता की कलम हमेशा के लिए शांत हो गई. लंबी बीमारी के चलते 86 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था. वह साउथ दिल्ली के हौज खास इलाके में रहती थीं.

आज भले ही वह हमारे बीच नहीं है, पर कहते हैं एक लेखक आपको कभी छोड़कर नहीं जाता, उनकी लिखी हुई कविताएं, कहानियां नज़्में और संस्मरण सदैव ही जिंदा रहते हैं.

उनकी खास कविताएं

 

1.

एक मुलाकात

कई बरसों के बाद अचानक एक मुलाकात

हम दोनों के प्राण एक नज्म की तरह काँपे ..

सामने एक पूरी रात थी

पर आधी नज़्म एक कोने में सिमटी रही

और आधी नज़्म एक कोने में बैठी रही

फिर सुबह सवेरे

हम काग़ज़ के फटे हुए टुकड़ों की तरह मिले

मैंने अपने हाथ में उसका हाथ लिया

उसने अपनी बाँह में मेरी बाँह डाली

और हम दोनों एक सैंसर की तरह हंसे

और काग़ज़ को एक ठंडे मेज़ पर रखकर

उस सारी नज्म पर लकीर फेर दी

 

2.

एक घटना

तेरी यादें

बहुत दिन बीते जलावतन हुई

जीती कि मरीं-कुछ पता नहीं।

सिर्फ एक बार-एक घटना घटी

ख्यालों की रात बड़ी गहरी थी

और इतनी स्तब्ध थी

कि पत्ता भी हिले

तो बरसों के कान चौंकते।

3.  खाली जगह

सिर्फ दो रजवाड़े थे

एक ने मुझे और उसे बेदखल किया था

और दूसरे को हम दोनों ने त्याग दिया था.

नग्न आकाश के नीचे-

मैं कितनी ही देर-

तन के मेंह में भीगती रही,

वह कितनी ही देर

तन के मेंह में गलता रहा.

 

3

विश्वास

एक अफवाह बड़ी काली

एक चमगादड़ की तरह मेरे कमरे में आई है

दीवारों से टकराती

और दरारें, सुराख और सुराग ढूंढने

आँखों की काली गलियाँ

मैंने हाथों से ढक ली है

और तेरे इश्क़ की मैंने कानों में रुई लगा ली है.

अमृता प्रीतम  प्रसिद्ध कवयित्री, उपन्यासकार और निबंधकार थीं, जो 20वीं सदी की पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री थीं. आज उनकी 100वीं जयंती है. आज ही के रोज उनका जन्म  31 अगस्त, 1919 को गुजरांवाला, पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था.  उनकी 100वीं जयंती पर गूगल ने एक बहुत ही प्यारा सा डूडल उन्हें समर्पित किया है. गूगल ने डूडल को बेहद खास अंदाज में बनाया है. जिसमें एक लड़की सूट सलवार पहनकर और सिर पर दुपट्टा लिए कुछ लिख रही है. आपको बता दें, अमृता प्रीतम अपने समय की मशहूर लेखिकाओं में से एक थीं. आइए जानते हैं उनके और उनकी रचनाओं के बारे में.

बचपन से था लिखने का शौक

अमृता प्रीतम जब किशोरावस्था में थी तभी से ही पंजाबी में  कविता, कहानी और निबंध लिखना लिखना शुरू कर दिया.  जब वह 11 साल की हुई उनके सिर से मां आंचल छीन गया. मां के निधन होने के बाद कम उम्र में ही उनके कंधों पर जिम्मेदारी आ गई.

16 साल की उम्र में प्रकाशित हुआ पहला संकलन  

अमृता प्रीतम उन विरले साहित्यकारों में से है जिनका पहला संकलन 16 साल की आयु में प्रकाशित हुआ था. जब 1947 में विभाजन का दौर आया. उस दौर में उन्होंने विभाजन का दर्द सहा था, और इसे बहुत क़रीब से महसूस किया था, इनकी कई कहानियों में आप इस दर्द को स्वयं महसूस कर सकते हैं.

विभाजन के समय इनका परिवार दिल्ली में आकर बस गया. अब इन्होंने पंजाबी के साथ-साथ हिंदी में भी लिखना शुरू किया. बता दें, उनकी शादी 16 साल की उम्र में एक संपादक से हुई. जिसके बाद साल 1960 में उनका तलाक हो गया.

आपको बता दें, अमृता प्रीतम ने कुल मिलाकर लगभग 100 पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है. अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं, जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ.

सम्मान और पुरस्कार

अमृता जी को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया, जिनमें प्रमुख हैं 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1958 में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कार, 1988 में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार (अंतरराष्ट्रीय) और 1982 में भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार.

वे पहली महिला थीं जिन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. साथ ही साथ वे पहली पंजाबी महिला थीं जिन्हें 1969 में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया.

हो चुकी हैं इन पुरस्कारों से सम्मानित

- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1956)

- पद्मश्री (1969)

- डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (दिल्ली युनिवर्सिटी- 1973)

- डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (जबलपुर युनिवर्सिटी- 1973)

- बल्गारिया वैरोव पुरस्कार (बुल्गारिया – 1988)

भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982)

- डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (विश्व भारती शांतिनिकेतन- 1987)

- फ्रांस सरकार द्वारा सम्मान (1987)

- पद्म विभूषण (2004)

जब दुनिया से चली गई एक शानदार लेखिका

31 अक्टूबर 2005 का वो दिन था जब अमृता की कलम हमेशा के लिए शांत हो गई. लंबी बीमारी के चलते 86 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था. वह साउथ दिल्ली के हौज खास इलाके में रहती थीं.

आज भले ही वह हमारे बीच नहीं है, पर कहते हैं एक लेखक आपको कभी छोड़कर नहीं जाता, उनकी लिखी हुई कविताएं, कहानियां नज़्में और संस्मरण सदैव ही जिंदा रहते हैं.

उनकी खास कविताएं

 

1.

एक मुलाकात

कई बरसों के बाद अचानक एक मुलाकात

हम दोनों के प्राण एक नज्म की तरह काँपे ..

सामने एक पूरी रात थी

पर आधी नज़्म एक कोने में सिमटी रही

और आधी नज़्म एक कोने में बैठी रही

फिर सुबह सवेरे

हम काग़ज़ के फटे हुए टुकड़ों की तरह मिले

मैंने अपने हाथ में उसका हाथ लिया

उसने अपनी बाँह में मेरी बाँह डाली

और हम दोनों एक सैंसर की तरह हंसे

और काग़ज़ को एक ठंडे मेज़ पर रखकर

उस सारी नज्म पर लकीर फेर दी

 

2.

एक घटना

तेरी यादें

बहुत दिन बीते जलावतन हुई

जीती कि मरीं-कुछ पता नहीं।

सिर्फ एक बार-एक घटना घटी

ख्यालों की रात बड़ी गहरी थी

और इतनी स्तब्ध थी

कि पत्ता भी हिले

तो बरसों के कान चौंकते।

3.  खाली जगह

सिर्फ दो रजवाड़े थे

एक ने मुझे और उसे बेदखल किया था

और दूसरे को हम दोनों ने त्याग दिया था.

नग्न आकाश के नीचे-

मैं कितनी ही देर-

तन के मेंह में भीगती रही,

वह कितनी ही देर

तन के मेंह में गलता रहा.

 

3

विश्वास

एक अफवाह बड़ी काली

एक चमगादड़ की तरह मेरे कमरे में आई है

दीवारों से टकराती

और दरारें, सुराख और सुराग ढूंढने

आँखों की काली गलियाँ

मैंने हाथों से ढक ली है

और तेरे इश्क़ की मैंने कानों में रुई लगा ली है.

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