पद्मश्री विष्णु पण्ड्या को 'माधवराव सप्रे सम्मान'
गुजराती पत्रकारिता की परंपरा 200 साल पुरानी है। आजादी से पहले और बाद में भी गुजराती पत्रकारिता अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करती आ रही है। आपातकाल के दौरान गुजरात से निकलने वाला साप्ताहिक पत्र साधना एक तरह से मीसाबंदियों की आवाज ही बन गया