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गुजराती पत्रकारिता की परंपरा 200 साल पुरानी है। आजादी से पहले और बाद में भी गुजराती पत्रकारिता अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करती आ रही है। आपातकाल के दौरान गुजरात से निकलने वाला साप्ताहिक पत्र साधना एक तरह से मीसाबंदियों की आवाज ही बन गया था। गुजरातियों ने पत्रकारिता के अलावा आजादी की लड़ाई, उद्योगों की स्थापना और समाज सुधार के कार्यों में भी महती भूमिका निभाई है। यह बात गुजराती पत्रकारिता और साहित्य के समर्थ हस्ताक्षर पद्मश्री विभूषित विष्णु पंड्या ने कहीं। वे 19 जून को माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान के 39वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित व्याख्यान एवं सम्मान समारोह बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। सप्रे संग्रहालय के सभागार में आयोजित समारोह में श्री विष्णु पंडया को माधवराव सप्रे राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृत किया गया। साथ ही विज्ञान संचारक सुश्री सारिका घारू को महेश गुप्ता सृजन सम्मान प्रदान किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व मुख्य आयकर आयुक्त डा. राकेश कुमार पालीवाल थे। सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार एवं मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डा विकास दवे ने अध्यक्षता की।

उल्लेखनीय है कि 19 जून हिन्दी नवजागरण के पुरोधा, निष्काम कर्मयोगी पं. माधवराव सप्रे की जयंती है। गुजराती का पहला समाचार पत्र मुंबई समाचार 1 जुलाई 1822 को मुंबई से प्रकाशित हुआ था। यह अखबार आज भी निकल रहा है और एशिया का सबसे पुराना जीवित समाचारपत्र है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा. पालीवाल ने कहा कि गुजराती समाज सेवाभावी समाज है। यहाँ के लोगों ने समाज सेवा और देश सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किए है। उन्होंने बताया कि गुजराती पत्र 'भूमि पुत्र' के माध्यम से उनका गुजराती समाज से जुड़ाव रहा। इसी तरह वर्ष 2009 में सर्वोदय परिवार के पत्र 'हिंद स्वराज' के शताब्दी अंक के संपादन के दौरान और भी करीब आया।

कार्यक्रम के अध्यक्ष डा. विकास दवे ने कहा कि यह आयोजन गुजराती पत्रकारिता के माध्यम से भारतीय पत्रकारिता के परिवेश पर चिंतन का अवसर भी देता है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर यह बात कही जाती है कि पत्रकारिता मिशन है या व्यवसाय। लेकिन दोनों में ही ईमानदारी का भाव होना चाहिए। यदि व्यवसाय का प्रवेश हो रहा है तो बुराई नहीं है। लेकिन इससे जीवन मूल्यों का हनन नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यूज में व्यूज का प्रवेश चंद में उपकृत हुए लोगों द्वारा राष्ट्रीय चेतना को दबाने का षड्यंत्र है। पत्रकारिता को अपने उद्देश्य से भटकना नहीं चाहिए। देखने में आ रहा है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बाकी तीन स्तंभों की सीमाओं का अतिक्रमण करने को आतुर है। यह स्थिति पत्रकारिता के लिए ठीक नहीं मानी जाएगी।

आरंभ में सप्रे संग्रहालय के संस्थापक संयोजक विजयदत्त श्रीधर ने आयोजन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मुंबई समाचार के 200 वर्ष पूरे हो रहे हैं। यह पूरी भारतीय पत्रकारिता के लिए गौरव की बात है। इस बहाने गुजराती पत्रकारिता के सामाजिक सरोकारों को जानने-समझने की भावना से यह आयोजन रखा गया है। उन्होंने दादा माखनलाल चतुर्वेदी की जन्मभूमि बाबई का नाम माखन नगर किए जाने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का आभार माना।

आयोजन में राजधानी के गुजराती समाज की सहभागिता भी रही। धन्यवाद ज्ञापन साहित्यकार सुधीर मोता ने किया। सम्मानित विभूतियों का प्रशस्ति वाचन सप्रे संग्रहालय की निर्देशक डा. मंगला अनुजा ने किया सम्मान की श्रृंखला में सर्वश्री कैलाश यादव, राकेश कुमार, जितेश चौहान सुनील दौराया, राहुल यादव को आंचलिक पत्रकार सम्मान दिए गए। इस अवसर पर सर्वश्री बालमुकुंद भारती, मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक कुमार पांडे, डा. शिवकुमार अवस्थी, डा रामाश्रय रत्नेश डा. एस.के. कुलश्रेष्ठ, राजेन्द्र हरदेनिया, डा. राकेश पाठक, ओमप्रकाश महता. एन.के. सिंह, चंद्रकान्त नायडू सतीश एलिया, विनोद नागर, डा. हरप्रसाद शर्मा, आलोक अवस्थी, सुरन्द्र द्विवेदी, अशोक मनवानी, डा. देवेन्द्र दीपक, डा. विनय राजाराम सूर्यकान्त नागर मुकेश वर्मा, डा. रामवल्लभ आचार्य, राजेन्द्र धनोतिया, ओमप्रकाश शर्मा, भूपेश गुप्ता, राजेश गुप्ता, गुजराती समाज भोपाल के सचिव हेमंत वोरा, कोषाध्यक्ष जयंत सिंह, भरत कांटावाला, मलय जोशी तथा लघुकथा महोत्सव में भाग लेने पधार देशभर के प्रतिष्ठित लघु कथाकार उपस्थित थे।

गुजराती पत्रकारिता की परंपरा

गुजराती पत्रकारिता की परंपरा और सरोकार विषय पर व्याख्यान में श्री पंड्या ने कहा कि मुंबई समाचार ने एक तरह से पत्रकारिता का इतिहास बदल डाला है। पत्रकारिता के प्रति गुजरात का समर्पण देखें तो गांधी से पहले पोरबंदर से अमेरिका पहुँचे लाला हरदयाल ने चार भाषाओं में समाचार पत्र निकाले। दो सौ साल पहले सूरत से घर से भागकर निकले फरदूनजी मर्झबानजी ने मुंबई समाचार निकाला जो आज जीवंत पत्रकारिता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। आजादी के आंदोलन में गुजराती पत्रकारिता की अहम भूमिका रही है। सन 1857 की क्रांति में पारसी अखवारों ने ही विदेशों में हिंदुस्तान की प्रतिष्ठा रखी। इस अँगरेज इतिहासकारों ने भी माना है गुजराती समाज के 50 से ज्यादा लोग पत्र- क्राति से जुड़े रहे फिर वे वापस घर तक नहीं आ पाए थे। सभी को फांसी हुई थी। 20वीं सदी में महात्मा गांधी ने 'नवजीवन', यंग इंडिया और हरिजन जैसे पत्र निकाले। इन पत्रों के जरिये समाज सुधार के कार्य करते थे जिसका परिणाम ही था कि एक महिला ने अपने बेटे की गुड़ खाने की आदत छुड़ाने में उनसे मदद चाही थी।

'मीसाबंदियों' की आवाज बने गुजराती पत्र

श्री पण्डया ने कहा कि आपातकाल के दौरान साप्ताहिक पत्र साधना मीसाबंदियों की आवाज बन गया था। सरकार की पैनी निगाह के बीच भी देश भर के मीसाबंदियों के समाचार इस पत्र में छपते थे। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश से बावस्ता संघ के एक प्रचारक प्यारेलाल खंडेलवाल ने पत्र लिखकर अनुरोध किया कि आज यही उम्मीद की किरण है। आप इसे हिंदी में भी निकाले। इस वजह से देवनागरी लिपि में समाचार लिखे जाने लगे। उन्होंने बताया कि आपातकाल में देश के सौ पत्रकार जेल में थे। उनमें से स्वयं भी एक थे। जेल के अनुभवों के आधार पर ही मीसावास्यम किताब लिखी थी।

यह मेरा तीसरा सम्मान

अपने सम्मान के प्रत्युत्तर में श्री विष्णु पण्ठचा ने कहा कि यह मेरा तीसरा सम्मान है। पहला सम्मान तब मिला था जब मुझे पत्रकारिता ने जेल पहुँचाया था। दूसरा सम्मान तब था जब गुजरात के दूर-दराज के गाँव में रहने वाली हमारे अखबार की एक पाठिका ने पत्र लिखकर यह आग्रह किया अर्थाभाव में आपका पत्र खरीद नहीं पाती हूँ, कृपया मुझ तक समाचार पत्र भिजवाएँ जब भी संभव होगा राशि भिजवा दूंगी एक अल्पशिक्षित पाठक से मिला यह सम्मान पदमश्री से कम नहीं है। तीसरा सम्मान विद्यानुरागी राजाभोज की नगरी में मुझे सप्रेजी के नाम पर स्थापित पत्रकारिता का यह राष्ट्रीय सम्मान मिलना है।

गुजराती पत्रकारिता की परंपरा 200 साल पुरानी है। आजादी से पहले और बाद में भी गुजराती पत्रकारिता अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करती आ रही है। आपातकाल के दौरान गुजरात से निकलने वाला साप्ताहिक पत्र साधना एक तरह से मीसाबंदियों की आवाज ही बन गया था। गुजरातियों ने पत्रकारिता के अलावा आजादी की लड़ाई, उद्योगों की स्थापना और समाज सुधार के कार्यों में भी महती भूमिका निभाई है। यह बात गुजराती पत्रकारिता और साहित्य के समर्थ हस्ताक्षर पद्मश्री विभूषित विष्णु पंड्या ने कहीं। वे 19 जून को माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान के 39वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित व्याख्यान एवं सम्मान समारोह बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। सप्रे संग्रहालय के सभागार में आयोजित समारोह में श्री विष्णु पंडया को माधवराव सप्रे राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृत किया गया। साथ ही विज्ञान संचारक सुश्री सारिका घारू को महेश गुप्ता सृजन सम्मान प्रदान किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व मुख्य आयकर आयुक्त डा. राकेश कुमार पालीवाल थे। सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार एवं मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डा विकास दवे ने अध्यक्षता की।

उल्लेखनीय है कि 19 जून हिन्दी नवजागरण के पुरोधा, निष्काम कर्मयोगी पं. माधवराव सप्रे की जयंती है। गुजराती का पहला समाचार पत्र मुंबई समाचार 1 जुलाई 1822 को मुंबई से प्रकाशित हुआ था। यह अखबार आज भी निकल रहा है और एशिया का सबसे पुराना जीवित समाचारपत्र है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा. पालीवाल ने कहा कि गुजराती समाज सेवाभावी समाज है। यहाँ के लोगों ने समाज सेवा और देश सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किए है। उन्होंने बताया कि गुजराती पत्र 'भूमि पुत्र' के माध्यम से उनका गुजराती समाज से जुड़ाव रहा। इसी तरह वर्ष 2009 में सर्वोदय परिवार के पत्र 'हिंद स्वराज' के शताब्दी अंक के संपादन के दौरान और भी करीब आया।

कार्यक्रम के अध्यक्ष डा. विकास दवे ने कहा कि यह आयोजन गुजराती पत्रकारिता के माध्यम से भारतीय पत्रकारिता के परिवेश पर चिंतन का अवसर भी देता है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर यह बात कही जाती है कि पत्रकारिता मिशन है या व्यवसाय। लेकिन दोनों में ही ईमानदारी का भाव होना चाहिए। यदि व्यवसाय का प्रवेश हो रहा है तो बुराई नहीं है। लेकिन इससे जीवन मूल्यों का हनन नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यूज में व्यूज का प्रवेश चंद में उपकृत हुए लोगों द्वारा राष्ट्रीय चेतना को दबाने का षड्यंत्र है। पत्रकारिता को अपने उद्देश्य से भटकना नहीं चाहिए। देखने में आ रहा है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बाकी तीन स्तंभों की सीमाओं का अतिक्रमण करने को आतुर है। यह स्थिति पत्रकारिता के लिए ठीक नहीं मानी जाएगी।

आरंभ में सप्रे संग्रहालय के संस्थापक संयोजक विजयदत्त श्रीधर ने आयोजन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मुंबई समाचार के 200 वर्ष पूरे हो रहे हैं। यह पूरी भारतीय पत्रकारिता के लिए गौरव की बात है। इस बहाने गुजराती पत्रकारिता के सामाजिक सरोकारों को जानने-समझने की भावना से यह आयोजन रखा गया है। उन्होंने दादा माखनलाल चतुर्वेदी की जन्मभूमि बाबई का नाम माखन नगर किए जाने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का आभार माना।

आयोजन में राजधानी के गुजराती समाज की सहभागिता भी रही। धन्यवाद ज्ञापन साहित्यकार सुधीर मोता ने किया। सम्मानित विभूतियों का प्रशस्ति वाचन सप्रे संग्रहालय की निर्देशक डा. मंगला अनुजा ने किया सम्मान की श्रृंखला में सर्वश्री कैलाश यादव, राकेश कुमार, जितेश चौहान सुनील दौराया, राहुल यादव को आंचलिक पत्रकार सम्मान दिए गए। इस अवसर पर सर्वश्री बालमुकुंद भारती, मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक कुमार पांडे, डा. शिवकुमार अवस्थी, डा रामाश्रय रत्नेश डा. एस.के. कुलश्रेष्ठ, राजेन्द्र हरदेनिया, डा. राकेश पाठक, ओमप्रकाश महता. एन.के. सिंह, चंद्रकान्त नायडू सतीश एलिया, विनोद नागर, डा. हरप्रसाद शर्मा, आलोक अवस्थी, सुरन्द्र द्विवेदी, अशोक मनवानी, डा. देवेन्द्र दीपक, डा. विनय राजाराम सूर्यकान्त नागर मुकेश वर्मा, डा. रामवल्लभ आचार्य, राजेन्द्र धनोतिया, ओमप्रकाश शर्मा, भूपेश गुप्ता, राजेश गुप्ता, गुजराती समाज भोपाल के सचिव हेमंत वोरा, कोषाध्यक्ष जयंत सिंह, भरत कांटावाला, मलय जोशी तथा लघुकथा महोत्सव में भाग लेने पधार देशभर के प्रतिष्ठित लघु कथाकार उपस्थित थे।

गुजराती पत्रकारिता की परंपरा

गुजराती पत्रकारिता की परंपरा और सरोकार विषय पर व्याख्यान में श्री पंड्या ने कहा कि मुंबई समाचार ने एक तरह से पत्रकारिता का इतिहास बदल डाला है। पत्रकारिता के प्रति गुजरात का समर्पण देखें तो गांधी से पहले पोरबंदर से अमेरिका पहुँचे लाला हरदयाल ने चार भाषाओं में समाचार पत्र निकाले। दो सौ साल पहले सूरत से घर से भागकर निकले फरदूनजी मर्झबानजी ने मुंबई समाचार निकाला जो आज जीवंत पत्रकारिता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। आजादी के आंदोलन में गुजराती पत्रकारिता की अहम भूमिका रही है। सन 1857 की क्रांति में पारसी अखवारों ने ही विदेशों में हिंदुस्तान की प्रतिष्ठा रखी। इस अँगरेज इतिहासकारों ने भी माना है गुजराती समाज के 50 से ज्यादा लोग पत्र- क्राति से जुड़े रहे फिर वे वापस घर तक नहीं आ पाए थे। सभी को फांसी हुई थी। 20वीं सदी में महात्मा गांधी ने 'नवजीवन', यंग इंडिया और हरिजन जैसे पत्र निकाले। इन पत्रों के जरिये समाज सुधार के कार्य करते थे जिसका परिणाम ही था कि एक महिला ने अपने बेटे की गुड़ खाने की आदत छुड़ाने में उनसे मदद चाही थी।

'मीसाबंदियों' की आवाज बने गुजराती पत्र

श्री पण्डया ने कहा कि आपातकाल के दौरान साप्ताहिक पत्र साधना मीसाबंदियों की आवाज बन गया था। सरकार की पैनी निगाह के बीच भी देश भर के मीसाबंदियों के समाचार इस पत्र में छपते थे। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश से बावस्ता संघ के एक प्रचारक प्यारेलाल खंडेलवाल ने पत्र लिखकर अनुरोध किया कि आज यही उम्मीद की किरण है। आप इसे हिंदी में भी निकाले। इस वजह से देवनागरी लिपि में समाचार लिखे जाने लगे। उन्होंने बताया कि आपातकाल में देश के सौ पत्रकार जेल में थे। उनमें से स्वयं भी एक थे। जेल के अनुभवों के आधार पर ही मीसावास्यम किताब लिखी थी।

यह मेरा तीसरा सम्मान

अपने सम्मान के प्रत्युत्तर में श्री विष्णु पण्ठचा ने कहा कि यह मेरा तीसरा सम्मान है। पहला सम्मान तब मिला था जब मुझे पत्रकारिता ने जेल पहुँचाया था। दूसरा सम्मान तब था जब गुजरात के दूर-दराज के गाँव में रहने वाली हमारे अखबार की एक पाठिका ने पत्र लिखकर यह आग्रह किया अर्थाभाव में आपका पत्र खरीद नहीं पाती हूँ, कृपया मुझ तक समाचार पत्र भिजवाएँ जब भी संभव होगा राशि भिजवा दूंगी एक अल्पशिक्षित पाठक से मिला यह सम्मान पदमश्री से कम नहीं है। तीसरा सम्मान विद्यानुरागी राजाभोज की नगरी में मुझे सप्रेजी के नाम पर स्थापित पत्रकारिता का यह राष्ट्रीय सम्मान मिलना है।

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